‘शिव की महान रात्रि’ महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का त्यौहार भारत के आध्यात्मिक उत्सवों की सूची में सबसे महत्वपूर्ण है। महाशिवरात्रि (Mahashivratri) कि यह रात इतनी महत्वपूर्ण क्यों है और हम इसका लाभ कैसे उठा सकते हैं।
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महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? (Why is Mahashivaratri celebrated?)
सद्गुरु शिव की रात, शिवरात्रि के बारे में बता रहे हैं, वे समझाते हैं कि ये रात मानव शरीर को संपूर्ण बनाने के लिए एक शक्तिशाली संभावना प्रदान करती है।
चंद्रमाह की 14वीं रात – अमावस्या से पहले की रात – महीने की सबसे अंधेरी रात होती है। उसे शिवरात्रि कहा जाता है। जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो उसका एक पहलू यह है कि हम आदियोगी, प्रथम योगी की बात कर रहे हैं। एक और पक्ष यह है कि ‘शिव’ शब्द का अर्थ है ’वह जो नहीं है।’ जो है, वह है सृष्टि। जो नहीं है, वह है शिव।
आज, आधुनिक विज्ञान कहता है कि पूरी सृष्टि शून्य से निकली है और शून्य में चली जाएगी। सब कुछ शून्य से आता है और शून्य में ही चला जाता है। शून्य सृष्टि का आधार है। तो, हम शिव को अस्तित्व के आधार रूप में देख रहे हैं। ‘वह जो नहीं है’, उसका आधार वो है, जो मौजूद है।
अगर आप रात के आकाश को देखें, तो वहां अरबों तारे होते हैं, मगर वह महत्वपूर्ण नहीं है। तारों की संख्या से कहीं ज्यादा खाली जगह है। सृष्टि बहुत थोड़े से हिस्से में है। विशाल खालीपन या शून्यता बड़ी चीज़ है।
उसी खालीपन की गोद में सृष्टि थमी हुई है। हम कहते हैं कि पूरी सृष्टि शिव की गोद में घटित हो रही है और शिव को ‘अंधकार’ कहते हैं। विडंबना यह है कि आधुनिक वैज्ञानिक इस अस्तित्व में हर चीज़ को थाम कर रखने वाली चीज़ को काली या अंधकारमय ऊर्जा कह रहे हैं। वे उसे अंधकारमय ऊर्जा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वे किसी और तरह से उसका वर्णन नहीं कर पा रहे और समझ नहीं पा रहे हैं कि उसकी प्रकृति क्या है। उन्हें बस शिव कहने की कमी है!
शिव का एक नाम भूतेश्वर भी है – यानी भूतों के स्वामी। पंच भूत आराधना जो हर शिवरात्रि को ध्यानलिंग में होती है, वह ध्यानलिंग में कृपा के उस आयाम तक पहुंचने के लिए है।
शिवरात्रि शब्द का अर्थ है, शिव की रात। उस दिन आपके शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर चढ़ती है। इसका लाभ उठाने के लिए योग में एक खास साधना है। मूल रूप से, चाहे वह एक मानव शरीर हो या वृहत ब्रह्मांडीय निकाय, मुख्य रूप से वे पंच भूत या पांच तत्वों यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही बने हैं। जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, वह सिर्फ इन पांच तत्वों की शरारत है।
अगर आप इस तंत्र, जिसे आप मनुष्य कहते हैं, की पूरी क्षमता को साकार करना चाहते हैं, या आप इसके परे जाकर विशाल ब्रह्मांडीय तंत्र के साथ एक होना चाहते हैं – चाहे आपकी आकांक्षा सिर्फ अपने सीमित व्यक्तित्व के लिए हो या सर्वव्यापी तत्व की – जब तक आपको जाने-अनजाने, चेतन या अचेतन रूप में इन पांच तत्वों पर एक निश्चित मात्रा में महारत नहीं होगी, तब तक आप न तो स्वयं के सुख को जान सकते हैं, न ब्रह्मांडीय प्राणी के आनंद को।
शिव का एक नाम भूतेश्वर भी है – यानी भूतों के स्वामी। पंच भूत आराधना जो हर शिवरात्रि को ध्यानलिंग में होती है, वह ध्यानलिंग में कृपा के उस आयाम तक पहुंचने के लिए है। पंच भूत आराधना एक शक्तिशाली संभावना पैदा करती है, जहां आप अपनी प्रणाली को एकीकृत कर सकते हैं और अपने शरीर में पंचतत्वों के अधिक बेहतर तरीके से जुड़ने के लिए उचित स्थिति पैदा कर सकते हैं।
एक शरीर से दूसरे में, ये पांच तत्व कितने बेहतर तरीके से जुड़े हुए हैं, यह उस व्यक्ति के बारे में करीब-करीब सब कुछ तय करता है। अगर इस शरीर को एक अधिक बड़ी संभावना के लिए सोपान बनना है, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारी प्रणाली ठीक से एकीकृत हो।
जिस हवा में आप सांस लेते हैं, जो पानी पीते हैं, जो खाना खाते हैं, जिस धरती पर चलते हैं और जीवनी शक्ति के रूप में जीवन की अग्नि, इन सभी तत्वों से आपका शरीर बना है। अगर आप इन्हें नियंत्रित, जीवंत और केंद्रित रखते हैं तो दुनिया में सेहत, खुशहाली और सफलता मिलनी ही है। मेरी कोशिश है कि तरह-तरह के साधन बनाए जाएं, जो लोगों के लिए इसे इस तरह संभव बनाए कि आपके मौजूद होने का तरीका ही पंच भूत आराधना हो
हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्श में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि (Mahashivratri), को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है।
इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं।
शिवरात्रि का महत्व (Importance of Shivratri)
प्रकाश आपके मन की एक छोटी सी घटना है। प्रकाश शाश्वत नहीं है, यह सदा से एक सीमित संभावना है क्योंकि यह घट कर समाप्त हो जाती है। हम जानते हैं कि इस ग्रह पर सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्त्रोत है। यहाँ तक कि आप हाथ से इसके प्रकाश को रोक कर भी, अंधेरे की परछाईं बना सकते हैं। परंतु अंधकार सर्वव्यापी है, यह हर जगह उपस्थित है। संसार के अपरिपक्व मस्तिष्कों ने सदा अंधकार को एक शैतान के रूप में चित्रित किया है। पर जब आप दिव्य शक्ति को सर्वव्यापी कहते हैं, तो आप स्पष्ट रूप से इसे अंधकार कह रहे होते हैं, क्योंकि सिर्फ अंधकार सर्वव्यापी है। यह हर ओर है।
इसे किसी के भी सहारे की आवश्यकता नहीं है। प्रकाश सदा किसी ऐसे स्त्रोत से आता है, जो स्वयं को जला रहा हो। इसका एक आरंभ व अंत होता है। यह सदा सीमित स्त्रोत से आता है। अंधकार का कोई स्त्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक स्त्रोत है। यह सर्वत्र उपस्थित है। तो जब हम शिव कहते हैं, तब हमारा संकेत अस्तित्व की उस असीम रिक्तता की ओर होता है। इसी रिक्तता की गोद में सारा सृजन घटता है। रिक्तता की इसी गोद को हम शिव कहते हैं।
भारतीय संस्कृति में, सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ केवल आपको बचाने या आपकी बेहतरी के संदर्भ में नहीं थीं। सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ कहती हैं, “हे ईश्वर, मुझे नष्ट कर दो ताकि मैं आपके समान हो जाऊँ।“ तो जब हम शिवरात्रि कहते हैं जो कि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिन है, तो यह एक ऐसा अवसर होता है कि व्यक्ति अपनी सीमितता को विसर्जित कर के, सृजन के उस असीम स्त्रोत का अनुभव करे, जो प्रत्येक मनुष्य में बीज रूप में उपस्थित है।
महाशिवरात्रि का महत्व (Importance of Mahashivaratri)
महाशिवरात्रि (Mahashivratri) आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि (Mahashivratri) को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं।
सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि (Mahashivratri) को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे।
यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि (Mahashivratri) को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व (The spiritual significance of Mahashivaratri)
इसके पीछे की कथाओं को छोड़ दें, तो यौगिक परंपराओं में इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत सी संभावनाएँ मौजूद होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है।
‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब मैं कहता हूँ, ‘योग’, तो मैं किसी विशेष अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा। इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है। महाशिवारात्रि की रात, व्यक्ति को इसी का अनुभव पाने का अवसर देती है।
शिवरात्रि – महीने का सबसे ज्यादा अँधेरे से भरा दिन
शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिवस होता है। प्रत्येक माह शिवरात्रि का उत्सव तथा महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का उत्सव मनाना ऐसा लगता है मानो हम अंधकार का उत्सव मना रहे हों। कोई तर्कशील मन अंधकार को नकारते हुए, प्रकाश को सहज भाव से चुनना चाहेगा। परंतु शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही है, ‘जो नहीं है’। ‘जो है’, वह अस्तित्व और सृजन है। ‘जो नहीं है’, वह शिव है। ‘जो नहीं है’, उसका अर्थ है, अगर आप अपनी आँखें खोल कर आसपास देखें और आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचना देख सकेंगे।
अगर आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है, तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही, अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है। कुछ ऐसे बिंदु, जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे तो दिखाई देते हैं, परंतु उन्हें थामे रहने वाली विशाल शून्यता सभी लोगों को दिखाई नहीं देती। इस विस्तार, इस असीम रिक्तता को ही शिव कहा जाता है। वर्तमान में, आधुनिक विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और शून्य में ही विलीन हो जाता है।
इसी संदर्भ में शिव यानी विशाल रिक्तता या शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है। इस ग्रह के प्रत्येक धर्म व संस्कृति में, सदा दिव्यता की सर्वव्यापी प्रकृति की बात की जाती रही है। यदि हम इसे देखें, तो ऐसी एकमात्र चीज़ जो सही मायनों में सर्वव्यापी हो सकती है, ऐसी वस्तु जो हर स्थान पर उपस्थित हो सकती है, वह केवल अंधकार, शून्यता या रिक्तता ही है।
सामान्यतः, जब लोग अपना कल्याण चाहते हैं, तो हम उस दिव्य को प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं। जब लोग अपने कल्याण से ऊपर उठ कर, अपने जीवन से परे जाने पर, विलीन होने पर ध्यान देते हैं और उनकी उपासना और साधना का उद्देश्य विलयन ही हो, तो हम सदा उनके लिए दिव्यता को अंधकार के रूप में परिभाषित करते हैं।
महाशिवरात्रि – जागृति की रात (Night of Awakening)
महाशिवरात्रि (Mahashivratri) एक अवसर और संभावना है, जब आप स्वयं को, हर मनुष्य के भीतर बसी असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं, जो कि सारे सृजन का स्त्रोत है। एक ओर शिव संहारक कहलाते हैं और दूसरी ओर वे सबसे अधिक करुणामयी भी हैं। वे बहुत ही उदार दाता हैं। यौगिक गाथाओं में वे, अनेक स्थानों पर महाकरुणामयी के रूप में सामने आते हैं। उनकी करुणा के रूप विलक्षण और अद्भुत रहे हैं।
इस प्रकार महाशिवरात्रि (Mahashivratri) 2019 कुछ ग्रहण करने के लिए भी एक विशेष रात्रि है। यह हमारी इच्छा तथा आशीर्वाद है कि आप इस रात में कम से कम एक क्षण के लिए उस असीम विस्तार का अनुभव करें, जिसे हम शिव कहते हैं। यह केवल एक नींद से जागते रहने की रात भर न रह जाए, यह आपके लिए जागरण की रात्रि होनी चाहिए, चेतना व जागरूकता से भरी एक रात!
शिव मंत्र लिरिक्स (Shiva Mantra)
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
मंत्र का अर्थ
हम त्रिनेत्र को पूजते हैं,
जो सुगंधित हैं, हमारा पोषण करते हैं,
जिस तरह फल, शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है,
वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
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मूल मंत्र
ऊँ नम: शिवाय।।
अन्य मंत्र
ऊँ शिव शिवाई नम:।।
7 चक्र का – बीज मंंत्र ओर रंग
1. चक्र : मूलाधार
तत्व : पृथ्वी
बीज मंत्र : लं
चक्र रंग : लाल
2. चक्र : स्वाधिष्ठान
तत्व : जल
बीज मंत्र : वं
चक्र रंग :नारंगी
3. चक्र : मणिपुर
तत्व : अग्नि
बीज मंत्र : रं
चक्र रंग : पीला
4. चक्र : अनाहद
तत्व : वायु
बीज मंत्र : यं
चक्र रंग : हरा
5. चक्र : .विशुद्धाख्य
तत्व : आकाश
बीज मंत्र : हं
चक्र रंग : आसमानी
6. चक्र : आज्ञाचक्र
बीज मंत्र : शं
चक्र रंग : नीला
7. चक्र : सहस्रार
बीज मंत्र : ॐ
चक्र रंग : बैंगनी
शिवरात्रि व्रत के फायदे (Benefits of Shivratri fasting)
जैविक शास्त्र के विशेषज्ञों के अनुसार, एक जानवर के विकास की प्रक्रिया में सबसे बड़ा कदम रीढ़ का क्षैतिज से सीधा होना है। सिर्फ इसी कदम के बाद आपकी बुद्धि पुष्पित हुई। इसलिए महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के रात भर चलने वाले उत्सव में, हम ऊर्जा के ऊपर की ओर चढाव का, मंत्रों और ध्यान से लाभ उठाकर, चैतन्य के और करीब हो सकते हैं।
महाशिवरात्रि (Mahashivratri) क्यों मनाई जाती है? जानें इसका कारण
हमारे जीवन में कोई साधना न होने पर भी इस दिन ऊर्जा ऊपर की ओर बढ़ती है। मगर खास तौर पर योगिक साधना करने वाले लोगों के लिए, इस रात को अपने शरीर को सीधी अवस्था में रखना, या न सोना बहुत महत्वपूर्ण है।
महाशिवरात्रि (Mahashivratri) ऐसे लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जो आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। संसार में महत्वाकांक्षा रखने वाले और गृहस्थ जीवन जीने वाले लोगों के लिए भी यह उतना ही अहम है। गृहस्थ जीवन बिताने वाले लोग महाशिवरात्रि (Mahashivratri) को शिव के विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं।
महत्वाकांक्षी लोग इसे उस दिन के रूप में देखते हैं, जब शिव ने अपने शत्रुओं पर जीत हासिल की थी। मगर योगिक परंपरा में, हम शिव को एक ईश्वर की तरह नहीं देखते, बल्कि प्रथम गुरु या आदि गुरु के रूप में देखते हैं, जिन्होंने योगिक प्रक्रिया की शुरुआत की थी। ‘शिव’ का मतलब है ‘वह, जो नहीं है’। अगर आप खुद को ऐसी स्थिति में रख सकते हैं कि आप, आप न रहें और शिव को होने दें, तो जीवन में एक नई दृष्टि लाने और जीवन को पूर्ण स्पष्टता से देखने की संभावना हो सकती है।
महाशिवरात्रि (Mahashivratri) की 4 कथाएं – पूरी रात आपको जगाए रखने के लिए (4 stories of Mahashivaratri)
योग परम्परा में अनगिनत शिव की कहानियाँ हैं जो तार्किक अन्दाज़ में अमूल्य ज्ञान देती हैं। यह रही ऐसी ही चार कहानियाँ।
कहानी 1: शिव और बैल गाड़ी।
सद्ग़ुरु: यह कुछ 300 साल पहले की बात है। कर्नाटक के सदूर दक्षिण क्षेत्र में अपनी बूढ़ी माँ के साथ एक योगी रहते थे। उनकी माँ काशी जाना चाहती थी ताकि वह विश्वनाथ जाकर शिव की गोद में प्राण त्याग सके। इस के अलावा उसने अपने जीवन में अपने बेटे से कभी कुछ नहीं माँगा था। उसने कहा : ” मुझे काशी ले चलो। मै बूढ़ी हो रही हूँ। मै वहीं जा के मरना चाहती हूँ। “
योगी ने अपनी बूढ़ी माँ के साथ दक्षिण कर्नाटक के जंगलों से होते हुए काशी के लिए एक लम्बी यात्रा शुरू की। वृद्ध होने के कारण, उनकी माँ का स्वास्थ्य बिगड़ गया। तो उन्होंने माँ को कंधे पर उठा लिया और ज़ाहिर तौर पर कुछ समय पश्चात वह कमज़ोर महसूस करने लगा।
उसके पास शिव से याचना करने के बजाए और कोई चारा नहीं बचा, उन्होंने याचना की, “हे शिव, मुझे मेरे इस प्रयास में विफल मत होने देना, बस यही एक चीज़ है जो मेरी माँ ने मुझ से माँगा है, कृपया मुझे इसे पूरा करने दें। मै इन्हें काशी ले जाना चाहता हूँ। हम वहाँ सिर्फ़ आप ही के लिए आ रहे हैं। कृपया मुझे ताक़त दें।”
तब जैसे ही उन्होंने चलना शुरू किया, तो पीछे से एक घंटी की आवाज़ सुनाई दी, जैसे कोई बैलगाड़ी आ रही हो। उन्हें धुँध से उबरती हुई एक बैलगाड़ी दिखाई दी, जिसे एक बैल खींच रहा था, जो थोड़ा अजीब था, क्योंकि एक बैल वाली बैलगाड़ी छोटे रास्तों के लिए होती है, जब सफ़र लम्बा और जंगली इलाक़े से होते हुए हो तो हमेशा दो बैल ही गाड़ी को खींचते हैं। पर जब आप थके हों तो ऐसी बारीकियों को किसे परवाह। गाड़ी नज़दीक आयी, पर वे चालक को नहीं देख पाए क्योंकि चालक लबादे में था और बाहर धुँध भी थी।
“मेरी माँ बीमार है , क्या हम आप की ख़ाली गाड़ी में यात्रा कर सकते हैं ”, उन्होंने कहा। अंदर बैठे व्यक्ति ने सिर हिला के हाँ कहा। वे दोनो गाड़ी में बैठ गए और बैलगाड़ी आगे चलने लगी। कुछ समय बाद योगी का ध्यान इस और गया कि जंगली रास्ता होने के वावजूद भी बैलगाड़ी बहुत आसानी से आगे बढ़ रही थी। तब उन्होंने नीचे देखा और पाया कि पहिए घूम नहीं रहे हैं। वे रुके हुये थे। पर गाड़ी आगे बढ़ रही थी। तब उन्होंने बैल की तरफ़ देखा और पाया कि बैल बैठा हुआ था पर बैलगाड़ी चल रही थी।
तब उन्होंने चालक की और देखा और पाया कि वहाँ सिर्फ़ लबादा ही था। उसने अपनी माँ की और देखा। माँ ने कहा “ अरे पागल, हम पहुँच गए, अब कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है, यही वो जगह है, अब मुझे जाने दो।“ इतना कह के माँ ने शरीर छोड़ दिया। बैल , बैल गाड़ी और चालक सब विलीन हो गए।
योगी अपने गाँव लौट आया। लोगों ने सोचा, “यह इतनी जल्दी लौट आया है, ये अवश्य ही अपनी माँ को कही छोड़ के आया है, यह उसे काशी नहीं ले गया “ उन्होंने उसे पूछा “तुम अपनी माँ को कहाँ छोड़ आए। ” उसने उत्तर दिया “हमें वहाँ जाना नहीं पड़ा, शिव ख़ुद आए थे हमारे लिए।” “क्या बकवास है ” उन्होंने कहा। योगी ने उत्तर दिया “मुझे फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या सोचते हैं, वे आए थे हमारे लिए और यही सच है, मेरा जीवन ज्योतिर्मय हो गया है, यह मैं अपने अंतर में जानता हूँ, अगर आप नहीं मानते तो यह आप जाने ।
” तब उन्होंने पूछा “ठीक है, हमें कुछ ऐसा दिखाओ, कि हम माने कि तुमने सच में शिव को देखा है, और वे सच में तुम्हारे लिए आए थे।” योगी ने कहा “मै नहीं जानता, मैंने उन्हें नहीं देखा। मुझे सिर्फ़ एक लबादा दिखा, वहाँ कोई चेहरा नहीं था। वहाँ कुछ नहीं था। वह ख़ाली था।”
अचानक सब ने देखा के वह ख़ुद वहाँ नहीं थे , सिर्फ़ उनके कपड़े ही दिखाई पड़ रहे थे। वे दक्षिण भारत के महान संत बने। जहां भी वह जाते लोग उन्हें बिना चहरे वाले योगी के रूप में लोग जानते थे।
कहानी 2 : मल्ला- एक शिव भक्त और एक चोर।
सद्ग़ुरु: मैं आप को एक ऐसे योगी के बारे में बता रहा हूँ जो उस जगह के काफ़ी क़रीब रहे जहां मेरा जन्म हुआ था। मैंने उनके बारे में सुना था और उस घटना के बारे में भी जो वहाँ हुई थी, पर युवावस्था में मैंने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। उसने मुझे काफ़ी प्रेरित किया , पर मैंने उस समय इसे अधिक महत्त्व नहीं दिया।
वर्तमान में नंजनगुड के नाम से प्रसिद्ध शहर की सीमा पर, मैसूर से क़रीब 16 किलोमीटर दूर एक योगी रहते थे। उनका नाम था, मल्ला। वे किसी परम्परा से संबंध नहीं रखते थे और ना ही उन्हें कोई पूजा पाठ की औपचारिक विधि ज्ञात थी। परंतु बचपन से ही, जब भी वे अपनी आँखे बंद करते तो उन्हें शिव की तस्वीर दिखाई देती। शायद योगी शब्द उनके लिए काफ़ी नहीं है।
उनके जैसे लाखों हैं। वे शिव के क़ैदी हैं। उनके पास कोई विकल्प भी नहीं है। शायद मैं भी उन्ही के जाल में फँसा हुआ हूँ। हम उनकी तलाश नहीं करते। अभिमान के कारण शायद किसी की भी तलाश नहीं करते पर उनके जाल में फँस अवश्य जाते हैं। शिव एक शिकारी थे। वे सिर्फ़ जानवरों को ही अपने जाल में नहीं फँसाते थे अपितु इंसानों को भी अपने जाल में फंसा लेते थे । यह उन्ही में से एक और था।
मल्ला, शिव के सिवा और कुछ नहीं जानता था। उसने कोई विशेष कौशल भी अर्जित नहीं किया था और वह जंगली इंसान बन गया था । यह तो उसे कभी विचार ही नहीं आया कि किसी को भी रोक कर उससे अपनी ज़रूरत के लिए कुछ भी छीन लेना ग़लत भी हो सकता है। तो वो ऐसा ही करता था और एक डाकू के रूप में प्रसिद्द हो गया था ।
वह जंगल के उस रास्ते का नियमित डाकू बन गया जिसे लोग सामान्य तौर पर इस्तेमाल करते थे। वह रास्ता जहाँ वो “राहदारी” वसूलता था, उस जगह का नाम पड़ा कल्लाणमूलाई , जिसका मतलब है “चोर का कोना”। शुरू में लोगों ने उसे धिक्कारा, पर साल के अंत में लोगों से इकट्ठा किए एक एक पैसे को वो महा शिव रात्रि मनाने में खर्च कर देता था। वह एक बड़ा भोज आयोजित करता।
कुछ सालों बाद लोगों ने उसे एक महान योगी के रूप में पहचाना और स्वेच्छा से योगदान करने लगे। और जो ऐसा ना करते, उन्हें योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करने का भी, उसे कोई पछतावा नहीं था।
कुछ सालों बाद, दो योगी जो आपस में भाई थे, इस रास्ते से गुज़र रहे थे। उन्होंने इस आदमी को देखा जो डाकू तो था, पर एक महान योगी भी था। उन्होंने कहा “तुम्हारा भक्ति भाव अद्भुत है, पर तुम्हारे तौर तरीकों से लोगों को कष्ट होता है। उसने कहा “मैं यह शिव के लिए करता हूँ , इसमें दिक़्क़त क्या है?” उन्होंने समझाया, अपने साथ अलग ले गए और कुछ पद्धतियों से गुज़ारा और उस स्थान का नाम कल्लाणमूलाई से बदल कर मल्लाणमूलाई रख दिया। आज भी यह स्थान मल्लाणमूलाई के नाम से ही जाना जाता है। और जो महाशिवरात्रि (Mahashivratri) वो मनाते थे वो आज एक विशाल संस्थान के रूप में विकसित हो गया है.
डकैती छोड़ के इन योगियों के साथ बैठने के क़रीब डेढ़ साल बाद ही उन्होंने महा समाधि प्राप्त कर ली। मल्ला को इस प्रकार मुक्त करवाने के बाद दोनो योगियों ने भी उसी दिन अपने शरीर छोड़ दिया। कबिनी नदी के किनारे इन लोगों के लिए एक खूबसूरत तीर्थस्थान निर्मित है, जिसे आज भी मल्लाणमूलाई के नाम से जाना जाता है। महाशिवरात्रि (Mahashivratri)
कहानी 3 : कैसे बने कुबेर शिव के महानतम भक्त।
सद्ग़ुरु: कुबेर यक्षों के राजा थे। यक्ष बीच का जीवन होते हैं, वे ना यहाँ के जीवन में होते हैं और ना ही वो पूरी तरह से, जीवन के बाद वाली स्थिति में होते हैं। कहानी कुछ इस तरह है कि रावण ने कुबेर को लंका से निकल दिया और कुबेर को मुख्यभूमि की और पलायन करना पड़ा। अपना राज्य और प्रजा को खोने की निराशा में, उसने शिव की पूजा करना शुरू की – और एक शिव भक्त बन गया।
शिव जी ने दया भाव दिखाते हुए, उसे एक अन्य राज्य और संसार का सारा धन दे दिया , इस तरह कुबेर संसार का सबसे अमीर व्यक्ति बन गया । धन मतलब कुबेर – यह कुछ इस प्रकार देखा जाने लगा। कुबेर, शिव जी का महान भक्त बन गया , परंतु जब भक्त को यह लगने लगे कि वो सबसे महान भक्त है, तो समझ जाएँ के सब खोने वाला है।
कुबेर को लगने लगा था कि वो शिव को इतना कुछ अर्पित करता है तो वो एक महानतम भक्त है । और बेशक शिव जी ने चढ़ावे में से विभूति के अलावा कभी कुछ नहीं छुआ। पर कुबेर ख़ुद को महान समझने लगा क्योंकि वो शिव जी को इतना कुछ चढ़ावे के रूप में भेंट करता था ।
एक दिन कुबेर शिव के पास गए और कहा “मैं आप के लिए क्या कर सकता हूँ? मैं आप के लिए कुछ करना चाहता हूँ ।” शिव जी ने कहा “तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो? कुछ भी नहीं ! क्योंकि मुझे किसी चीज़ की आवश्यकता ही नहीं है। मैं ठीक हूँ। परंतु मेरा बेटा” उन्होंने गणपति की और इशारा करते हुए कहा, “ये लड़का हमेशा भूखा रहता है, इसे अच्छे से खिला दो।”
“यह तो अत्यंत सरल है” कह कर कुबेर गणपति को अपने साथ भोजन के लिए ले गया। उसने गणपति को खाना खिलाना शुरू किया और वो खाते गए और खाते ही गए। कुबेर ने सैकड़ों रसोइयों की व्यवस्था की और प्रचुर मात्रा में खाना बनाना शुरू किया। उन्होंने यह सारा भोजन गणपति को परोसा और वे खाते रहे।
कुबेर चिंतित हो उठे और कहा “रूक जाओ, अगर तुम इतना खाओगे तो तुम्हारा पेट फट जाएगा।” गणपति ने कहा “आप उसकी चिंता मत करो। देखिए मैंने एक सांप को एक कमर पेटी के रूप में बांध रखा है। तो आप मेरे पेट की चिंता ना करें। मुझे भूख लगी है । मुझे खाना खिलाएँ। आप ही ने कहा था कि आप मेरी भूख मिटा सकते हैं !“
कुबेर ने अपना सारा धन खर्च कर दिया। कहते हैं कि कुबेर ने दूसरे लोकों से भी भोजन मँगवा के गणपति को खिलाया। गणपति ने सारा भोजन खाने के बाद भी कहा “मैं अभी भी भूखा हूँ, मेरा भोजन कहाँ है? ” तब कुबेर को अपने विचार के छोटेपन का एहसास हुआ और उसने शिव के सामने झुकते हुए कहा “मैं समझ गया, मेरा धन आप के सामने एक तिनके के समान भी नहीं है, जो आप ने मुझे दिया उसी का कुछ अंश आप को वापिस दे कर मैंने खुद को एक महान भक्त समझने की गलती की” और इस क्षण के बाद उसके जीवन ने एक अलग ही दिशा ले ली। महाशिवरात्रि (Mahashivratri)
कहानी 4 : अर्धनारी रूप में शिव और भृगु महाऋषि
सद्ग़ुरु: जब हम योग की बात करते हैं तो हम किसी व्यायाम या किसी तकनीक की बात नहीं कर रहे। हम इस सृष्टि के विज्ञान की बात कर रहे हैं और कैसे सृष्टि के इस अंश को इसकी परम संभावना तक ले जाया जा सकता है। हम उस विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बात कर रहे हैं जिससे जीवन के हर एक पहलू को उसकी अंतिम सम्भावना तक ले जाया जा सकता है।
जब शिव योग का संचारण और सृष्टि की संरचना की व्याख्या सप्तऋषियों से कर रहे थे, तब एक सुंदर घटना घटित हुई।
सप्तऋषियों में से एक ऋषि जो बाद में भृगु महाऋषि के नाम से जाने गए, शिव के एक उत्साही भक्त थे। इस पहले योग प्रोग्राम में, जो कांति सरोवर के किनारे हो रहा था, जिसे कृपा की झील के नाम से भी जाना जाता है , पार्वती भी मौजूद थी। भृगु हमेशा की तरह सुबह जल्दी आए और वे शिव की प्रदक्षिणा करना चाहते थे।
पार्वती शिव के क़रीब बैठी थीं, परंतु भृगु ने दोनो के बीच से होते हुए शिव की परिक्रमा पूरी की। क्योंकि वो सिर्फ़ शिव की प्रदक्षिणा करना चाहते थे, पार्वती की नहीं।
शिव इससे खुश हुए पर पार्वती नहीं। उन्हें यह पसंद नहीं आया। उन्होंने शिव की और देखा। शिव जी ने कहा“थोड़ा और क़रीब हो जाओ, वो परिक्रमा करेगा।” पार्वती और क़रीब आ गयीं । भृगु ने देखा की उसके निकलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, तो उसने एक चूहे का रूप धारण किया और पार्वती को बाहर रखते हुए अकेले शिव जी की ही परिक्रमा पूरी की ।
पार्वती क्रोधित हो गयीं । तो शिव ने उन्हें अपनी जंघा पर बैठा लिया। तब भृगु ने एक छोटे पंछी का रूप धारण कर के शिव जी की परिक्रमा पूरी कर ली। अब पार्वती अत्यंत क्रोधित हो चुकी थीं। शिव जी ने पार्वती को खींच कर ख़ुद में मिला लिया और उन्हें ख़ुद का हिस्सा बना लिया। जिससे उनका आधा हिस्सा शिव बन गया और आधा हिस्सा पार्वती। वे अर्धनारीश्वर बन गए।
भृगु ने यह देखा और ख़ुद को एक मधुमक्खी के रूप में बना लिया और उनकी दाहिनी टांग का चक्कर लगा दिया। भृगु का बचकाना भक्तिभाव देख कर शिव जी खुश तो हुए पर साथ ही वे नहीं चाहते थे कि भृगु अपनी भक्ति में इतना खो जाएँ के वो प्रकृति के परम स्वभाव को ही समझ ना पाएँ। तो वे सिद्धासन में बैठ गए।
अब भृगु के पास कोई रास्ता नहीं बचा था कि वो सिर्फ़ शिव या उनके शरीर के किसी हिस्से का चक्कर लगा सकें। अगर उन्हें अब परिक्रमा करनी थी, तो दोनों सिद्धांतों, स्त्रैण और पौरुष दोनो की ही करनी पड़ेगी।
यह कहानी हमें संप्रेषित करती है कि जब हम योग की बात करते हैं तो हम सभी आयामों के समावेश की बात करते हैं। यह कोई व्यायाम या प्रक्रिया नहीं है जिससे आप सेहतमंद होते हैं। यह मानव जाति के परम कल्याण के बारे में है जिसमें जीवन का कोई भी पहलू, बाहर नहीं रखा जा सकता। यह ऐसे आयाम को छूने के बारे में है, जो सारे आयामों से परे है।
यह एक ऐसे तंत्र के बारे में है जिससे आप अपने पहले से मोजूद तंत्र – जैसे शरीर, मन, भावनाएँ और ऊर्जा को परमात्मा तक जाने वाली सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल कर सकें। यह एक ऐसी पद्धति है जिससे आप अपनी परम प्रकृति के लिए, स्वयं को पहले कदम के रूप तैयार कर सकते हैं। महाशिवरात्रि (Mahashivratri)
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टिप्पणी (Note)
इस महाशिवरात्रि (Mahashivratri) पोस्टमे हमने विज्ञान भैरव तंत्र (Vigyan Bhairav Tantra), पतंजलि योग सूत्र, रामायण (Ramcharitmanas), श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagvat Geeta), महाभारत (Mahabhart), वेद (Vedas) आदी परसे बनाइ है । (Bhakti Yoga in Hindi)
आपसे निवेदन है की आप योग करेनेसे पहेले उनके बारेमे जाण लेना बहुत आवशक है । आप भीरभी कोय गुरु या शास्त्रो को साथमे रखके योग करे हम नही चाहते आपका कुच बुरा हो । योगमे सावधानी नही बरतने पर आपको भारी नुकशान हो चकता है । (Bhakti Yoga in Hindi)
इस पोस्ट केवल जानकरी के लिये है । योगके दरम्यान कोयभी नुकशान होगा तो हम जवबदार नही है । हमने तो मात्र आपको सही ज्ञान मिले ओर आप योग के बारेमे जान चके इस उदेशसे हम आपको जानकारी दे रहे है । (Bhakti Yoga in Hindi)
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