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वरुण मुद्रा (Varuna Mudra in Hindi) मुद्रा क्या है :-
वरुण का मतलब होता है – जल। यह मुद्रा जल की कमी से होने वाले सभी तरह के रोगों से हमें बचाती है। हमारा शरीर पाँच तत्वों से मिलकर बना है। जब हमारे शरीर में जल और वायु तत्व का संतुलन बिगड़ जाता है तो हमें वात और कफ संबंधी रोग होने लगतें हैं। इन सभी रोगों से बचने के लिए वरुण मुद्रा की जाती है।
जल का गुण होता है तरलता और जल भोजन को तरल बनानें में ही मदद नहीं करता बल्कि उससे कई प्रकार के अलग-अलग तत्वों का निर्माण करता है अगर शरीर को जल नही मिले तो शरीर सूख जाता है तथा शरीर की कोशिकाएं भी सूखकर बेकार हो जाती है जल तत्व शरीर को ठंडकपन और सक्रियता प्रदान करता है। वरुण मुद्रा जल की कमी (डिहाइड्रेशन) से होने वाले सभी तरह के रोगों से बचाती है। आयें जानते हैं इसके फायदे , इसे कैसे किया जाए। (Varuna Mudra in Hindi)
वरुण मुद्रा की विधि :-
1- सबसे पहले आप जमीन पर कोई चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ , ध्यान रहे की आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो।
2- अब अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख लें और हथेलियाँ आकाश की तरफ होनी चाहिये।
3- फिर आप सबसे छोटी अँगुली(कनिष्ठा)के उपर वाले पोर को अँगूठे के उपरी पोर से स्पर्श करते हुए हल्का सा दबाएँ तथा बाकी की तीनों अँगुलियों को सीधा करके रखें। (Varuna Mudra in Hindi)
4- अपना ध्यान श्वास पर लगाकर अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास के दौरान श्वास सामान्य रखना है।
5- इस अवस्था में कम से कम 24 मिनट तक रहना चाहिये।
वरुण मुद्रा करने का समय व अवधि :-
इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। वरुण मुद्रा का अभ्यास प्रातः एवं सायं अधिकतम 24-24 मिनट तक करना उत्तम है। (Varuna Mudra in Hindi)
वरुण मुद्रा से होने वाले लाभ-
जब शरीर में जल तत्व की अधिकता हो जाए तो इस मुद्रा का प्रयोग करें। (Varuna Mudra in Hindi)
उदाहरनार्थ:-
1. जब पेट में पानी भर जाये जिसे जलोदर कहते हैं।
2. जब फेफड़ों में पानी भर जाये जिसे प्लुरोसी कहते हैं।
3. हाथों , पैरों में कहीं भी पानी भर जाये।
4. शरीर में कहीं भी सूजन आ जाये तो यह मुद्रा करें।
5. नजले , जुकाम में जब नाक से पानी बह रहा हो , आँखों से पानी बह रहा हो , साईनस के रोग हो जायें , फेफड़ों में बलगम भर जाए , तो इस मुद्रा का प्रयोग करें।
6. भारत के कई भागों में , विशेषतय: बिहार, असम , में फाइलेरिया हो जाता है। पैर सूज जाते है। इस मुद्रा से लाभ होगा।
7. इसी प्रकार पैरों में हाथी पांव हो जाए , पैर सूजकर हाथी की भांति बड़े हो जाएं , तो इस मुद्रा का प्रयोग करना चाहिए। इस मुद्रा को आधे घंटे से 45 मिनट तक लगाएं।
8. इसका नियमित अभ्यास करने से साधक के कार्यों में निरंतरता का संचार होता है।
9. यह मुद्रा जल की कमी से होने वाले समस्त रोगों का नाश करती है।
10. वरुण मुद्रा स्नायुओं के दर्द, आंतों की सूजन में लाभकारी है।
11. अगर इसका अभ्यास निमियत रूप से किया जाए तो रक्त शुद्ध हो जाता है।
12. अधिक पसीने आने की समस्या खत्म हो जाती है। (Varuna Mudra in Hindi)
13. यह मुद्रा शरीर के यौवन को बनाये रखने के साथ – साथ शरीर को लचीला भी बनाती है।
14. यह शरीर के जल तत्व के संतुलन को बनाए रखती है।
15. आँत्रशोथ तथा स्नायु के दर्द और संकोचन को रोकती है।
16. यह मुद्रा त्वचा को भी सुंदर बनाती है।
17. शरीर में रक्त परिसंचरण बेहतर होता है।
18. यह मुद्रा रक्त संचार संतुलित करने, चर्मरोग से मुक्ति दिलाने, खून की कमी (एनीमिया) को दूर करने में सहायक है।
19. वरुण मुद्रा´ को रोजाना करने से जवानी लंबे समय तक बनी रहती है और बुढ़ापा भी जल्दी नही आता।
20. इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से शरीर का रूखापन दूर होता है।
वरुण मुद्रा में सावधानियां :-
कफ , शर्दी जुकाम वाले व्यक्तियों को इस मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नहीं करना चाहिए। आप इस मुद्रा को गर्मी व अन्य मौसम में प्रातः सायं 24-24 मिनट तक कर सकते हैं।
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