ज्ञानयोग (Gyan Yoga)

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ज्ञान योग : अध्‍यात्‍म का एक अनूठा पहलू

योग के चार मुख्य मार्ग हैं – भक्ति, ज्ञान, क्रिया और कर्म। इनमें से ज्ञान को गहरे चिंतन के साथ जोड़कर देखा जाता है। क्या चिंतन करके आप ज्ञान योग के के पथ पर चल सकते हैं ?

Gyan Yoga
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ज्ञान योग क्या है – What is Gyan Yoga / Jnana yoga

ज्ञानयोग से तात्पर्य है – ‘विशुद्ध आत्मस्वरूप का ज्ञान’ या ‘आत्मचैतन्य की अनुभूति’ है। इसे उपनिषदों में ब्रह्मानुभूति भी कहा गया है। और यह भी कहा गया है की–

“ऋते ज्ञा नन्न मुक्तिः ”
ज्ञा न के वि ना मुक्ति संभव नहीं है–

ज्ञान योग से तात्पर्य है – ‘विशुद्ध आत्मस्वरूप का ज्ञान’ या ‘आत्मचैतन्य की अनुभूति’ है। इसे उपनिषदों में ब्रह्मानुभूति भी कहा गया है।

ज्ञानयोग के साहित्य में उपनिषत्, गीता, तथा आचार्य शंकर के अद्वैत परक ग्रन्थ तथा उन पर भाष्यपरक ग्रन्थ हैं। इन्हीं से ज्ञान योग की परम्परा दृढ़ होती है। आधुनिक युग में विवेकानन्द आदि विचारकों के विचार भी इसमें समाहित होते हैं।

ज्ञान योग ज्ञान और स्वयं की जानकारी प्राप्त करने को कहते है। यह योग अपनी और अपने परिवेश को अनुभव करने के माध्यम से समझना है | ज्ञान योग के जरिए आत्मा शुद्ध होती है और हम अपने आप को आत्मा से जोड़ पाते हैं ।अधिक चिंता लेने वाले लोगों के लिए ज्ञान योग उत्तम होता है। और इसे करने से दिमाग शांत रहता है ।

यह योग करने से यादाश्त पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है ।और याददाश्त तेज बनी रहती है ज्ञान योग का नाता दिमाग से अहैंधिक होता है। और इस योग को काफी कठिन योग माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस योग को करने से हम ब्रह्म में लीन हो जाते है । आज की पोस्ट में हम आपको ज्ञान योग के विषय में बताने जा रहे हैं।

आध्यात्मिक क्षेत्र में साधक का जो मार्ग होता है अर्थात् जिस प्रकार के साधनों का वह प्रयोग करता है उन्हीं के अनुरूप उसकी साधना का नाम होता है। ज्ञान के द्वारा सर्वोच्च अवस्था की प्राप्ति के मार्ग को ज्ञानयोग कहा जाता है। वैसे तो उन सभी साधनाओं को जिनमें ज्ञान को माध्यम बनाकर लक्ष्य की प्राप्ति की जाती है उन्हें ज्ञानयोग कह सकते हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता में सांख्ययोग को भी ज्ञानयोग कहा गया है। परन्तु मुख्यतया वेदान्त की साधना को ही ज्ञानयोग के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस साधना में ज्ञान ही मुख्य साधना है। यह ज्ञान की उच्चतम और अंतिम अवस्था है। जिसके कारण साधक ब्रह्म के साथ एकाकार हो जाता है अर्थात् वह ब्रह्म ही हो जाता है।

ज्ञानयोग के सिद्धान्तों के अनुसार आत्मा आनन्दस्वरूप, ज्ञानस्वरूप, सत्, कुटस्थ, नित्य, शुद्ध, बुद्ध है। अपने वास्तविक स्वरूप में आत्मा ब्रह्म ही है। एक मात्र ब्रह्म ही सत्य है ब्रह्म के अतिरिक्त इस संसार में किसी की सत्ता नहीं है। यह समस्त विप्तप्रपंच उसी अद्वितीय तत्व में अन्तरभूत स्थित और प्रकाशित है। ब्रह्म स्वयं प्रकाशमान अनन्त, अखण्ड, अनादि, अविनाशी, चेतन स्वरूप तथा आनन्दमय है जिस प्रकार एक ही अग्नि जगत में प्रविष्ट होकर नाना रूपों में प्रकट होती है। उसी प्रकार सभी जीवों के अन्तरात्मा में वह एक ही ब्रह्म नाना रूपों में प्रकट हो रहा है और वह इस जगत के बाहर भी है।

ज्ञानयोग के अनुसार जीव ब्रह्म की एकता का ज्ञान हो जाना ही मोक्ष है। ज्ञानयोग के अनुसार यह तभी संभव है जबकि जीव और ब्रह्म की एकता सिद्ध हो जाती है। ज्ञानयोग के उत्तम कोटि के साधकों की तो श्रुतिवाक्य के सुनने मात्र से हृदय ग्रंथि खुल जाती है तथा जीव और ब्रह्म का भेद समाप्त हो जाता है। जीव जो अज्ञानवश अपने को जीव मानता है वास्तव में वह ब्रह्म ही है और ब्रह्म को जानने पर ब्रह्म ही हो जाता है। अतः ब्रह्मभाव की स्थिति ही मोक्ष अर्थात् कैवल्य है।

वेदान्त के अनुसार यह मोक्ष ज्ञान से ही संभव है। ब्रह्मभाव की स्थिति को प्राप्त करना ही ज्ञानयोग की साधना का लक्ष्य है और शास्त्रों में इस साधना का वर्णन अग्रलिखित रूप से किया गया है। ज्ञानयोग की साधना को बहिरंग और अंतरंग दो प्रकार की साधनाओं में विभक्त किया गया है।

ज्ञान योग की साधना के दो प्रकार – Two types of practice of Gyan / Jnana yoga

ज्ञानयोग की साधना करने के लिए व्यक्ति को दो तरह की साधना व उनके चरणों का पालन करना होता है। ये इस प्रकार हैं :

1. बहिरंग साधन 2. अंतरंग साधन

बर्हिरंग साधना

इस साधना का पहला भाग है बर्हिरंग साधना, जिसका अर्थ बाहरी रूप से की जाने वाली साधना। यानी इसमें व्यक्ति को अपने भौतिक व्यक्तित्व में सुधार करने की आवश्यकता होती है। इस साधना को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा गया है। यह भाग कुछ इस प्रकार हैं :

विवेक

ज्ञानयोग के बर्हिरंग साधन का पहला चरण है विवेक यानी बुद्धि। बुद्धि के सही इस्तेमाल से व्यक्ति के मन में सकारात्मक ऊर्जा व भावना का विकास होता है। ऐसे में इस चरण के दौरान व्यक्ति को सात्विक आहार और सत्य का पालन करना होता है।

वैराग्य

वैराग्य के चरण में आने पर व्यक्ति को सांसारिक सुखों और इच्छा का त्याग करना होता है। ऐसे में व्यक्ति को अपने आत्मिक सुख को पहचाने पर विशेष ध्यान देना होता है।

षट्सम्पत्ति

ज्ञानयोग की साधना में साधक को छ: बातों का अर्थात् षट्सम्पत्तियों का पालन करना अनिवार्य बताया गया है। इनको साधक की सम्पत्ति माना जाता है इन्हीं के सहारे साधक साधना मार्ग में प्रवेश कर पाता है।

  • शम – शम में मनुष्य को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना होता है। ताकि वो अपने मन को पूरी तरह से नियंत्रित कर सके।
  • दम – दम का अर्थ है, दमन करना। यानी व्यक्ति को अपनी इंद्रियों से सांसारिक लोभ-मोह व सभी सुखों के विचारों का त्याग करना होता है।
  • तितिक्षा – इस चरण में व्यक्ति को अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिए सभी कष्टों को सहते हुए अपनी साधना में लीन रहना होता है। इस दौरान व्यक्ति को अपने लक्ष्य को जीतने या हारने की बजाय अपने लक्ष्य को पूरा करने पर जोर देना होता है।
  • उपरति – उपरति का तात्पर्य होता है, संयमित होना। यानी साधना के दौरान व्यक्ति को अपना लक्ष्य हासिल होने पर भी उदासीन बने रहने की जरूरत होती है।
  • श्रृद्धा – ज्ञान योग के चरण में श्रद्धा को विश्वास के तौर पर जाना जाता है। यानी व्यक्ति ने अपनी साधना के चरणों के दौरान जो भी अभी तक प्राप्त किया है, उसे उन पर विश्वास करना होता है।
  • समाधान – मन को एकाग्र करना ही समाधान है। दरअसल, मन स्वाभाविक रूप से एक साथ कई बातों पर विचार कर सकता है। वहीं साधना के जरिए व्यक्ति उपासना, जप और ध्यान करता है, जो उसके मन को एक बिंदु पर रोकने में मदद कर सकता है।

मुमुक्षुत्व

अज्ञान के कारण जीव जो बन्धन अनुभव कर रहा है उस बन्धन से मुक्त होने की इच्छा को भी मुमुक्षुत्व कहते हैं अर्थात् मोक्ष प्राप्ति की इच्छा। इस प्रकार विवेक से वैराग्य तथा वैराग्य से मोक्ष की इच्छा और ब्रह्म की जिज्ञासा होती है।

अंतरंग साधन

श्रवण

सम्पूर्ण वेदान्त वाक्यों का एक ही ब्रह्म में तात्पर्य समझना श्रवण कहलाता है। इसके अन्तर्गत शिष्य गुरू के पास जाकर ‘अहं ब्रह्मास्मि’ ‘तत्वमसि’ ‘अयमात्माब्रह्म’ आदि श्रुति वाक्यों को सुनता है।

मनन

इसके पश्चात् इन वाक्यों का तात्पर्य समझकर वेदान्त के अनुकूल युक्तियों द्वारा अद्वितीय ब्रह्म का चिन्तन करना मनन कहलाता है।

निदिध्यासन

इसके पश्चात् शरीर से लेकर बुद्धि पर्यन्त जितने भी विभिन्न जड़ पदार्थ हैं उनमें भिन्नत्व की भावना को हटाकर सबमें एकमात्र ब्रह्म विषयक चित्त की एकाग्रता को निदिध्यासन कहते हैं।

  • यम – अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करके मन को पूरी तरह से साधना में लीन करना।
  • नियम – जीवन से उन मोह या सुखों का त्याग करना, तो व्यक्ति को ध्यान लगाने से रोकते हों।
  • त्याग – संसार के समस्त सुखों का त्याग कर साधना में रहना ही त्याग का चरण है। इसे महापुरुष त्याग भी कहते हैं।
  • मौन – इस चरण में आने पर व्यक्ति को अपनी इंद्रियों को शांत रखना होता है और मन में ही विचार करना होता है।
  • देश – इस चरण में व्यक्ति को अपना पूरा ध्यान किसी एक ही बिंदु पर ही क्रेद्रिंत करना होता है।
  • काल – इस चरण में व्यक्ति को यह समझना होता है कि व्यक्ति का शरीर नश्वर है, यानी इंसान की मृत्यु निश्चित है और एक मात्र ईश्वर ही है, जो सभी जगह मौजूद रहता है।
  • आसन – इस चरण में व्यक्ति को बिना हिले-डुले एक स्थिति में आराम से बैठने वाले आसन सीखने होते हैं। जो मन को शांत करते हैं। इस दौरान वे सिद्धासन, पद्मासन, स्वस्तिकासन, सुखासन आदि सीखते हैं।
  • मूलबन्ध – इस चरण में व्यक्ति को ईश्वर का ध्यान लगाना होता है।
  • देहस्थिति – ध्यान लगाने पर जब मन एकाग्र व शांत हो जाता है, तो शरीर के अंगों में एक तरह की स्थिरता व ठहराव आता है, जो मन व शारीरिक संतुलन को बनाता है।
  • दृक्स्थिति – इस चरण में व्यक्ति हमेशा सत्य की ही खोज करता है और सत्य क्या है उसे पहचानने का प्रयास करता है।
  • प्राणायाम – इस चरण में व्यक्ति को अपने सांस लेने की प्रक्रिया का विस्तार करना होता है।
  • प्रत्याहार – प्रत्याहार का अर्थ है, इन्द्रियों पर धैर्य रखना। यानी इन्द्रियों के कारण खर्च होने वाली ऊर्जा को संतुलित करना। एक तरह से व्यक्ति को बोलते, सुनते या देखते समय सिर्फ आवश्यक बातों पर ही गौर करना चाहिए, ताकि शरीर में अधिक से अधिक ऊर्जा को सुरक्षित रखा जा सके।
  • धारणा – किसी एक बिंदु पर मन को एकाग्र करना या विचार करना ही धारणा है। जो व्यक्ति को उसकी संतुलित की हुई ऊर्जा को संचित रखने और उसे कैसे खर्च करना है, इस पर विचार करने की क्षमता देती है।
  • समाधि – ज्ञान योग का सबसे आखिरी पड़ाव है समाधि, यानी साधक का शून्य होना। साधक जब अपनी इंद्रियों, मन और ऊर्जा पर नियंत्रण करना सीख लेता है, तो वह अपनी साधान करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाता है। इसके बाद व्यक्ति परमात्मा के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो जाता है।
Gyan Yoga
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ज्ञानयोग का स्वरूप – Form of Gyan / Jnana yoga

ज्ञानयोग दो शब्दों से मिलकर बना है–“ज्ञान” तथा “योग”। ज्ञान शब्द के कई अर्थ किये जाते हैं–

  • लौकिक ज्ञान–वैदिक ज्ञान,
  • साधारण ज्ञान एवं असाधारण ज्ञान,
  • प्रत्यक्ष ज्ञान–परोक्ष ज्ञान

किन्तु ज्ञानयोग में उपरोक्त मन्तव्यों से हटकर अर्थ सन्निहित किया गया है। ज्ञान शब्द की उत्पत्ति “ज्ञ” धातु से हुयी है, जिससे तात्पर्य है – जानना। इस जानने में केवल वस्तु (Object) के आकार प्रकार का ज्ञान समाहित नहीं है, वरन् उसके वास्तविक स्वरूप की अनुभूति भी समाहित है। इस प्रकार ज्ञानयो ग में यही अर्थ मुख्य रूप से लिया गया है।

ज्ञानयोग में ज्ञान से आशय अधोलिखित किये जाते हैं–

  • आत्मस्वरूप की अनुभूति
  • ब्रह्म की अनूभूति
  • सच्चिदानन्द की अनुभूति
  • विशुद्ध चैतन्य की अवस्थ

ज्ञान योग के दार्शनिक आधार – Philosophical Basis of Gyan / Jnana yoga

ज्ञानयोग जिस दार्शनिक आधार को अपने में समाहित करता है, वह है ब्रह्म (चैतन्य) ही मूल तत्त्व है उसी की अभिव्यक्ति परक समस्त सृष्टि है। इस प्रकार मूल स्वरूप का बोध होना अर्थात् ब्रह्म की अनूभूति होना ही वास्तविक अनुभूति या वास्तविक ज्ञान है। एवं इस अनुभूति को कराने वाला ज्ञानयोग है।

व्यक्ति परमा त्मा को ज्ञान मार्ग से पाना चाहता है । वह इस संसार की छोटी-छोटी वस्तुओं से सन्तुष्ट होने वाला मनुष्य नहीं है । अनेक ग्रन्थों के अवलोकन से भी उसे सन्तुष्टि नहीं मिलती । उसकी आत्मा सत्य को उसके प्रकृत रूप में देखना चाहती है और उस सत्य-स्वरूप का अनुभव करके, तद्रूप होकर, उस सर्वव्यापी परमात्मा के साथ एक होकर सत्ता के अन्तराल में समा जाना चाहती है ।

ऐसे दार्शनिक के लिए तो ईश्वर उसके जीवन का जीवन है । उसकी आत्मा की आत्मा है । ईश्वर स्वयं उसी की आत्मा है । ऐसी कोई अन्य वस्तु शेष ही नहीं रह जाती, जो ईश्वर न हो।

ज्ञान योग की विधि – Method of Gyan / Jnana yoga

विवेकानन्द के अनुसार ज्ञानयोग के अन्तर्गत सबसे पहले निषेधात्मक रूप से उन सभी वस्तुओं से ध्यान हटाना है जो वास्तविक नहीं हैं, फिर उस पर ध्या न लगाना है जो हमारा वास्तविक स्वरूप है – अर्थात् सत् चित् एवं आनन्द।

  • दूसरा पीठ को सीधा रखें अगर पीठ को सीधा रखने में दिक्कत हो रहा है। तो किसी दीवार से सहारे लेकर बैठे ।
  • तीसरा आंख बंद करके पलकें स्थिर कर ले अब ज्ञान मुद्रा लगाएं दिमाग को बिल्कुल स्थिर कर ले।
  • इसमें अब अंगूठे के ऊपरी हिस्से को तर्जनी के ऊपरी हिस्से में मिलाकर और बाकी तीन उंगलियों को सीधा करें।
  • इस मुद्रा को बनाकर अपने पैर के घुटनों पर रख ले।
  • अब अपनी सांसो पर ध्यान दें और अपनी सांसो को ना घटाएं ना बढ़ाएं और ध्यान से यह मुद्रा करें ।

ज्ञान योग में ब्रह्म वाक्य – Brahma Sentence in Gyan / Jnana yoga

उपनिषदों में इसे ब्रह्म वाक्य कहा गया है। इसके अन्तर्गत ब्रह्मवाक्यों श्रवण, मनन तथा निदिध्यासन को कहा गया है।

  • श्रवण (उपनिषदों में कही गयी बातों को सुनना या पढ़ना)
  • मनन (श्रवण किये गये मन्तव्य पर चिन्तन करना
  • निदिध्यासन (सभी वस्तुओं से अपना ध्यान हटाकर साक्षी पक्षी की तरह बन जाना, स्वयं को तथा संसार को ब्रह्ममय समझने से ब्रह्म से एकत्व स्थापित हो जाता है )

ये ब्रह्म वाक्य प्रधान रूप से चार माने गये हैं–

  • अयमात्मा ब्रह्म
  • सर्वं खल्विदं ब्रह्म
  • तत्त्वमसि
  • अहं ब्रह्मस्मि

गुरु मुख से इनके श्रवण के अनन्तर इनके वास्तविकर अर्थ की अनुभूति ही ज्ञानयोग की प्राप्ति कही गयी है।

ज्ञानयोग करने का तरीका – Way of doing Gyan / Jnana yoga

  • शम-इन्द्रियों और मन का निग्रह।
  • इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण रखें।
  • ऊपर से ऊपर उठो।
  • तितिक्षा दृढ़ होना अनुशासित होना।
  • आस्था पवित्र शास्त्रों और गुरु के वचनों में विश्वास और विश्वास रखें।
  • समाधान-निश्चय करना और प्रयोजन रखना।

श्रीमद भगवत गीता के अनुसार योग – Yoga according to Shrimad Bhagavad Gita

गीता का मुख्य उपदेश योग है इसीलिए गीता को योग शास्त्र कहा जाता है। जिस प्रकार मन के तीन अंग हैं- ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक। इसीलिए इन तीनों अंगों के अनुरूप गीता में ज्ञानयोग, भक्तियोग, और कर्मयोग का समन्वय हुआ है।

आत्मा बन्धन की अवस्था में चल जाती है। बन्धन का नाश योग से ही सम्भव है। योग आत्मा के बन्धन का अन्त कर उसे ईश्वर की ओर मोड़ती है। गीता में ज्ञान, कर्म और भक्ति को मोक्ष का मार्ग कहा है। इस प्रकार गीता ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग का सम्भव होने के कारण योग की त्रिवेणी कही जाती है।

श्रीमद भगवत गीता के अनुसार ज्ञानयोग – Gyan Yoga according to Shrimad Bhagavad Gita

गीता के अनुसार मानव अज्ञानवश बन्धन की अवस्था में पड़ जाता है। अज्ञान का अन्त ज्ञान से होता है इसीलिये
गीता में मोक्ष पाने के लिये ज्ञान की महत्ता पर प्रकाश डालती है।
गीता के अनुसार ज्ञान के प्रकार –

तार्किक ज्ञान :

वस्तुओं के बाह्य रूप को देखकर उनके स्वरूप की चर्चा बुद्धि के द्वारा करता है। बौ द्धिक अथवा तार्किक ज्ञान
को ‘विज्ञान’ कहा जाता है। तार्किक ज्ञान में ज्ञाता और ज्ञेय का द्वैत विद्यमान रहता है।

आध्यात्मिक ज्ञान :

वस्तुओं के आभास में व्याप्त सत्यता का निरूपण करने का प्रयास करता है। जबकि आध्यात्मिक ज्ञान को ज्ञान कहा जाता है। । आध्यात्मिक ज्ञान में ज्ञाता और ज्ञेय का द्वैत नष्ट हो जाता है। ज्ञान शास्त्रों के अध्ययन से होने वाला आत्मा का ज्ञान है जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है व सब भूतों में आत्मा को और आत्मा में सब भूतों को देखता है। वह विषयों में ईश्वर को और ईश्वर में सब को देखता है। ज्ञान की प्राप्ति के लिये मानव को अभ्यास करना पड़ता है।

श्रीमद भगवत गीता के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने की विधि – ज्ञान योग इन भगवद गीता – Method of acquiring knowledge according to Shrimad Bhagavad Gita

गीता में ज्ञान को प्राप्त करने के लिये पद्धति का प्रयोग हुआ है-

  • (1) जो व्यक्ति ज्ञान चाहता है उसे शरीर, मन और इन्द्रियों को शुद्ध रखना पड़ता है। इन्द्रियाँ और मन स्वभावतः चंचल होते हैं जिसके फलस्वरूप वे विषयों के प्रति आसक्त हो जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि मन दूषित होता है, कर्मों के कारण अशुद्ध हो जाता है। यदि मन और इन्द्रियों को शुद्ध नहीं कि या जाये तो साधक ईश्वर से मिलने से वंचित हो जाता है। क्योंकिक्यों ईश्वर अशुद्ध वस्तुओं को नहीं स्वीकार करता है।
  • (2) मन और इन्द्रियों को उनके विषयों से हटाकर ईश्वर पर केन्द्रीभूत कर देना भी आवश्यक माना जाता हैं इस क्रिया का फल यह हो ता है कि मन की चंचलता नष्ट हो जाती है और वह ईश्वर के अनुशीलन में व्यस्त हो जाता है।
  • (3) जब साधक को ज्ञान हो जाता है तब आत्मा और ईश्वर में तादात्म्य का सम्बन्ध हो जाता है। वह समझने लगता है कि आत्मा ईश्वर का अंग है। इस प्रकार की तादात्म्यता का ज्ञान इस प्रणाली का तीसरा अंग है।

श्रीमद भगवत गीता के अनुसार ज्ञानयोग का सार – Essence of Jnana Yoga according to Shrimad Bhagavad Gita

गीता में ज्ञान को पुष्ट करने के लिए योगाभ्यास का आदेश दिया जाता है। यद्यपि गीता योग का आदेश देती है फिर भी वह योग के भयानक परिणामों के प्रति जागरूक रहती है। ज्ञान को अपनाने के लिये इन्द्रियों के उन्मूलन का आदेश नहीं दिया गया है। ज्ञान से अमृत की प्राप्ति होती है। कर्मों की अपवित्रता का नाश होता है और व्यक्ति सदा के लिये ईश्वरमय हो जाता है, ज्ञानयोग की महत्ता बताते हुए गीता में कहा गया है, ‘‘जो ज्ञाता है वह हमारे सभी भक्तों में श्रेष्ठ है, जो हमें जानता है वह हमारी आराधना भी करता है।“

आसक्ति से रहित ज्ञान में स्थिर हुए चित्त वा ले यज्ञ के लिये आचरण करते हुए सम्पूर्ण कर्म नष्ट हो जाते हैं। इस
संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसन्देह कुछ भी नहीं है।

Gyan Yoga
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ज्ञानयोग कदम – Steps : ज्ञान योग के फायदे – Benefits of Gyan / Jnana yoga yoga

  • पहले चरण को श्रवणम कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है सुनना। इस चरण में गुरु अपने छात्रों को सही मार्ग पर ले जाता है।
  • वह अपने शिष्यों को वेदों में वर्णित सभी शिक्षाओं को सिखाता है जबकि छात्र अपने गुरु की सभी शिक्षाओं को सुनते और आत्मसात करते हैं।
  • इस मार्ग के महान गुरुओं द्वारा उपयोग की जाने वाली कहानियाँ और उपमाएँ कई बार दर्ज और दोहराई गई हैं।
  • दूसरे चरण को मननम कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है अपने दिमाग में तथ्यों पर विचार करना या पारिश्रमिक देना।
  • इस अवस्था में छात्र जिसने अब अपने गुरु से वह सब कुछ सीख लिया है जो वह सीख सकता है इन शिक्षाओं पर चिंतन करने का प्रयास करता है।
  • वह देखता है चिंतन करता है और फिर अपने निष्कर्ष निकालता है।

ज्ञान योग के फायदे – Benefits of Gyan / Jnana yoga

  • तनाव को कम करने में फायदेमंद है
  • बेहतर निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाए
  • भावनाओं को नियंत्रित करने में
  • दुख और दर्द से मुक्ति पाने के लिए
  • सुरक्षा की भावना विकसित करने में

तनाव को कम करने में फायदेमंद है

ज्ञानयोग करने के लिए व्यक्ति को साधना करने की मुद्रा में बैठना होता है। इस वजह से योग योग के लाभों में मन को एक केंद्र में स्थिर करना भी शामिल है।

इसके अलावा योग योग का एक कार्यात्मक प्रभाव होता है यही कारण है कि योग योग को मन को नियंत्रित करने का तरीका भी कहा जा सकता है।

इस कारण यह काफी हद तक अवसाद और तनाव बनने वाले कारकों को दूर कर सकता है। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि ज्ञान योग अवसाद और तनाव के लक्षण कम करने वाला योग भी हो सकता है।

बेहतर निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाए

ज्ञानयोग के लाभ व्यक्ति के सोचने और विचार करने की क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। इस वजह से यह योग व्यक्ति को किसी मुद्दे पर गहराई से सोचने में मदद कर सकता है।

साथ ही इस योग के अभ्यास से व्यक्ति में किसी भी स्थिति या समस्या के बारे में बेहतर निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित होती है। इस आधार पर ज्ञानयोग मन को शांत करके उसे बेहतर निर्णय लेने के लिए तैयार करने में मदद कर सकता है।

भावनाओं को नियंत्रित करने में

ज्ञानयोग की मदद से व्यक्ति खुद की भावनात्मक स्थितियों पर आसानी से नियंत्रण करना सीख सकता है। के अनुसार योग व्यक्ति की सोचने की क्षमता को बढ़ा सकता है। इसलिए योग योग का अभ्यास भावनात्मक स्थितियों पर विचार करके उन पर नियंत्रण करने में भी मदद मिल सकती है।

दुख और दर्द से मुक्ति पाने के लिए

आज के दौर में अधिकतर लोग विभिन्न तरह की बीमारियों से परेशान हैं जो उनके दुख-दर्द का एक आम कारण हो सकता है। वहीं योग व्यक्ति को इन सभी समस्याओं से अलग सोचने और जीवन जीने में मदद कर सकता है।

ज्ञानयोग हमें उन स्थितियों को सहन करने की क्षमता भी देता है जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा योग व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों को सहने की क्षमता प्रदान करने में मदद कर सकता है। इस आधार पर ज्ञानयोग को सांसारिक दुख-दर्द को दूर करने का भी एक मार्ग माना जा सकता है।

सुरक्षा की भावना विकसित करने में

ज्ञानयोग करने से व्यक्ति के मन में स्वयं के प्रति सुरक्षा की भावना का विकास हो सकता है। उदाहरण के लिए एक व्यक्ति लंबी बीमारी स्थिति या अजीब व्यवहार के कारण अपने परिवार से अलग होने से डरता है।

वहीं परिवार से सहयोग न मिलने के कारण वह असुरक्षित महसूस कर सकता है। साथ ही योग के अभ्यास से व्यक्ति के मन में भक्ति की भावना विकसित होती है जो उसके मन से इस तरह की भावनाओं को आने से रोकने में मदद मिल सकती है।

Gyan Yoga
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ज्ञान योग के लिए कुछ सावधानियाँ – Precautions for Gyan Yoga / Jnana yoga

अगर आप चाय कॉफी नाश्ता कुछ तुरंत खाने के बाद करते हैं। कोई भी मुद्रा तो या नुकसानदायक होता है तुरंत खाने के बाद कोई भी मुद्रा नहीं की जाती है ।अगर कोई मुद्रा करते समय आपको कोई तकलीफ हो रही है तो तुरंत छोड़ देना चाहिए।

ज्ञान योग का लाभ पाने के लिए व्यक्ति को एक लंबी अवधि के लिए इसकी मुद्रा का अभ्यास करना पड़ सकता है। इसलिए ज्ञान योग का अभ्यास करने के दौरान कुछ विशेष सावधानियों का ध्यान रखना पड़ता है। यह सावधानियां कुछ इस प्रकार हैं :

  • बिना योग गुरु के ज्ञान योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए। क्योंकि, गुरु के बिना इसके अभ्यास का सही तरीके जानने में परेशानी हो सकती है।
  • ज्ञान योग को पूरा करने के लिए व्यक्ति को इसके प्रत्येक चरणों का पालन करना होता है। इन चरणों को पूरा करने के लिए उन्हें सावधानी और लगन की जरूरत होती है।
  • गर्भवती महिलाओं को लंबे समय तक ज्ञान योग की मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • जैसा लेख में हमने बताया है कि ज्ञान योग करने के लिए इसके दो चरण हैं, जिनके उपचरण भी हैं। इसलिए जरूरी है कि इसके सभी चरणों को क्रमवार ही आगे बढ़ाएं। पहला चरण सिद्ध होने पर ही अगले चरण का प्रयास करें।
  • ज्ञान योग करने का तरीका यह बताता है कि इसके प्रत्येक चरणों को करने में एक लंबी अवधि लग सकती है। इसलिए अगर ज्ञान योग कर रहे हैं, तो मन सहज रखें और खुद पर विश्वास बनाएं रखें, ताकि इसके लंबे चरणों की प्रक्रिया के दौरान आपका मानसिक स्तर संतुलित बना रहे।
  • ज्ञानयोग करते समय व्यक्ति को एक लंबे तक आसन व साधना में लीन रहना पड़ सकता है। इस वजह से उसे सात्विक भोजन अपनाना चाहिए। दरअसल, सात्विक आहार को शुद्ध और संतुलित माना जाता है, जो शरीरिक ऊर्जा को बढ़ाने और मन को शांत करने में मदद कर सकता है। इसके लिए आहार में ताजा, रसदार और पौष्टिक फल, सब्जियां, अंकुरित अनाज, नट्स, गाय का दूध, दही और शहद का सेवन कर सकते हैं ।

टिप्पणी (Note)

इस पोस्टमे हमने विज्ञान भैरव तंत्र (Vigyan Bhairav Tantra), पतंजलि योग सूत्र, रामायण (Ramcharitmanas),  श्रीमद्‍भगवद्‍गीता (Shrimad Bhagvat Geeta)महाभारत (Mahabhart)वेद (Vedas)  आदी परसे बनाइ है । (Kundalini Yoga in Hindi)

आपसे निवेदन है की आप योग करेनेसे पहेले उनके बारेमे जाण लेना बहुत आवशक है । आप भीरभी कोय गुरु या शास्त्रो को साथमे रखके योग करे हम नही चाहते आपका कुच बुरा हो । योगमे सावधानी नही बरतने पर आपको भारी नुकशान हो चकता है । (Kundalini Yoga in Hindi)

इस पोस्ट केवल जानकरी के लिये है । योगके दरम्यान कोयभी नुकशान होगा तो हम जवबदार नही है । हमने तो मात्र आपको सही ज्ञान मिले ओर आप योग के बारेमे जान चके इस उदेशसे हम आपको जानकारी दे रहे है । (Kundalini Yoga in Hindi)

इसेभी देखे – ॥ भारतीय सेना (Indian Force) ॥ पुरस्कार (Awards) ॥ इतिहास (History) ॥ युद्ध (War) ॥ भारत के स्वतंत्रता सेनानी (FREEDOM FIGHTERS OF INDIA) ॥ Gyan Yoga PDF ॥ Gyan Yoga Benefits ॥ Gyan Yoga in english ॥ Gyan Yoga in Bhagavad gita॥ What is Gyan Yoga in hindi ॥ gyan yoga in bhagavad gita in hindi ॥ jnana yoga poses ॥ gyan yoga in bhagavad gita ॥

ज्ञान योग क्या है – What is Gyan Yoga / Jnana yoga

Gyan Yoga

ज्ञानयोग (Gyan Yoga) से तात्पर्य है – ‘विशुद्ध आत्मस्वरूप का ज्ञान’ या ‘आत्मचैतन्य की अनुभूति’ है। इसे उपनिषदों में ब्रह्मानुभूति भी कहा गया है। ज्ञानयोग के साहित्य में उपनिषत्, गीता, तथा आचार्य शंकर के अद्वैत परक ग्रन्थ तथा उन पर भाष्यपरक ग्रन्थ हैं। इन्हीं से ज्ञान योग की परम्परा दृढ़ होती है। आधुनिक युग में विवेकानन्द आदि विचारकों के विचार भी इसमें समाहित होते हैं।

ज्ञानयोग के प्रकार – Practice of Gyan Yoga

ज्ञानयोग की साधना करने के लिए व्यक्ति को दो तरह की साधना व उनके चरणों का पालन करना होता है। ये इस प्रकार हैं : 1. बहिरंग साधन 2. अंतरंग साधन

ज्ञान योग का स्वरूप – Form of Gyan Yoga / Jnana yoga

ज्ञानयोग दो शब्दों से मिलकर बना है–“ज्ञान” तथा “योग”। ज्ञान शब्द के कई अर्थ किये जाते हैं–
लौकिक ज्ञान–वैदिक ज्ञान, साधारण ज्ञान एवं असाधारण ज्ञान, प्रत्यक्ष ज्ञान–परोक्ष ज्ञान

ज्ञान योग की विधि – Method of Gyan Yoga / Jnana yoga

विवेकानन्द के अनुसार ज्ञानयोग के अन्तर्गत सबसे पहले निषेधात्मक रूप से उन सभी वस्तुओं से ध्यान हटाना है जो वास्तविक नहीं हैं, फिर उस पर ध्या न लगाना है जो हमारा वास्तविक स्वरूप है – अर्थात् सत् चित् एवं आनन्द।
दूसरा पीठ को सीधा रखें अगर पीठ को सीधा रखने में दिक्कत हो रहा है। तो किसी दीवार से सहारे लेकर बैठे ।

ज्ञानयोग कदम – Steps : Gyan Yoga / Jnana yoga

पहले चरण को श्रवणम कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है सुनना। इस चरण में गुरु अपने छात्रों को सही मार्ग पर ले जाता है।
वह अपने शिष्यों को वेदों में वर्णित सभी शिक्षाओं को सिखाता है जबकि छात्र अपने गुरु की सभी शिक्षाओं को सुनते और आत्मसात करते हैं।
इस मार्ग के महान गुरुओं द्वारा उपयोग की जाने वाली कहानियाँ और उपमाएँ कई बार दर्ज और दोहराई गई हैं।
दूसरे चरण को मननम कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है अपने दिमाग में तथ्यों पर विचार करना या पारिश्रमिक देना।
इस अवस्था में छात्र जिसने अब अपने गुरु से वह सब कुछ सीख लिया है जो वह सीख सकता है इन शिक्षाओं पर चिंतन करने का प्रयास करता है।
वह देखता है चिंतन करता है और फिर अपने निष्कर्ष निकालता है।

ज्ञान योग के फायदे – Benefits of Gyan Yoga / Jnana yoga

Mahashivaratri celebrated

तनाव को कम करने में फायदेमंद है
बेहतर निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाए
भावनाओं को नियंत्रित करने में
दुख और दर्द से मुक्ति पाने के लिए
सुरक्षा की भावना विकसित करने में

ज्ञान योग के लिए कुछ सावधानियाँ – Precautions for Gyan Yoga / Jnana yoga

अगर आप चाय कॉफी नाश्ता कुछ तुरंत खाने के बाद करते हैं। कोई भी मुद्रा तो या नुकसानदायक होता है तुरंत खाने के बाद कोई भी मुद्रा नहीं की जाती है ।अगर कोई मुद्रा करते समय आपको कोई तकलीफ हो रही है तो तुरंत छोड़ देना चाहिए।
ज्ञान योग का लाभ पाने के लिए व्यक्ति को एक लंबी अवधि के लिए इसकी मुद्रा का अभ्यास करना पड़ सकता है। इसलिए ज्ञान योग का अभ्यास करने के दौरान कुछ विशेष सावधानियों का ध्यान रखना पड़ता है। यह सावधानियां कुछ इस प्रकार हैं :

ज्ञान योग किसे नहीं करना चाहिए ?

बिना योग गुरु के ज्ञान योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए। क्योंकि, गुरु के बिना इसके अभ्यास का सही तरीके जानने में परेशानी हो सकती है।
ज्ञान योग को पूरा करने के लिए व्यक्ति को इसके प्रत्येक चरणों का पालन करना होता है। इन चरणों को पूरा करने के लिए उन्हें सावधानी और लगन की जरूरत होती है।

हम कितनी बार ज्ञान योग कर सकते हैं ?

जैसा कि आपको लेख में बताया गया है कि ज्ञान योग कोई योग आसन नहीं है, जिसे दिन में किसी एक निश्चित समय में किया जा सके। यह एक साधना है, जिसके सभी चरणों में शामिल बातों को पहले खुद में शामिल करने का अभ्यास करना होता है। इसलिए ज्ञान योग की साधना करने वाला व्यक्ति इसके सभी मूल सिद्धांतों को दिन के प्रत्येक क्षण में अपनाने का प्रयास करता है।

ज्ञान योग साधना में गुरु का क्या महत्व है ?

कहा जाता है कि ज्ञान कोई भी हो बिना गुरु के अधूरा ही माना जाता है। वहीं बात जब ज्ञान योग की हो तो इसमें व्यक्ति को आत्मसमर्पण और साधना की जरूरत होती है, जिसके बारे में एक गुरु ही बेहतर ढंग से समझा सकता है। इसलिए अगर कोई योग ज्ञान करना चाहता है, तो उसे किसी अच्छे आध्यात्मिक गुरु की देखरेख में ही ज्ञान योग की साधना करनी चाहिए।

ज्ञानयोग (Gyan Yoga) की बुनियादी अवधारणाएं क्या हैं?

ज्ञान या ज्ञान” के लिए संस्कृत है और ज्ञान योग ध्यान आत्म-जांच और चिंतन के अभ्यास के माध्यम से वास्तविकता की वास्तविक प्रकृति का ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग है। यह अभ्यास आपको माया की अस्थायी और मायावी प्रकृति का एहसास करने और सभी चीजों की एकता को देखने की अनुमति देता है।

ज्ञानयोग (Gyan Yoga) का अर्थ क्या है?

ज्ञानयोग क्या है ज्ञानयोग का अर्थ ज्ञानयोग की तरह आध्यात्मिक क्षेत्र में साधक का मार्ग अर्थात उसकी साधना का नाम उसके द्वारा उपयोग किए जाने वाले माध्यम के अनुसार रखा गया है। ज्ञानयोग द्वारा उच्चतम अवस्था को प्राप्त करने के मार्ग को ज्ञानयोग कहा जाता है।

भगवत गीता में योग का अर्थ क्या है ?

Yoga

गीता में ज्ञान को पुष्ट करने के लिए योगाभ्यास का आदेश दिया जाता है। यद्यपि गीता योग का आदेश देती है फिर भी वह योग के भयानक परिणामों के प्रति जागरूक रहती है। ज्ञान को अपनाने के लिये इन्द्रियों के उन्मूलन का आदेश नहीं दिया गया है। ज्ञान से अमृत की प्राप्ति होती है। कर्मों की अपवित्रता का नाश होता है और व्यक्ति सदा के लिये ईश्वरमय हो जाता है, ज्ञानयोग की महत्ता बताते हुए गीता में कहा गया है, ‘‘जो ज्ञाता है वह हमारे सभी भक्तों में श्रेष्ठ है, जो हमें जानता है वह हमारी आराधना भी करता है।“