राजयोग | Raja Yoga

राजयोग क्या है ? – What Is Raja Yoga?

Raja Yoga
Raja Yoga

राजयोग (Raja Yoga) अन्तर जगत की ओर एक यात्रा है। यह स्वयं को जानने या यूँ कहें कि पुन: पहचानने की यात्रा है। राजयोग (Raja Yoga) अर्थात् अपनी भागदौड़ भरी जिन्दगी से थोड़ा समय निकालकर शान्ति से बैठकर आत्म निरीक्षण करना।

इस तरह के समय निकालने से हम अपने चेतना के मर्म की ओर लौट आते हैं। इस आधुनिक दुनिया में, हम अपनी जिन्दगी से इतने दूर निकल आये हैं कि हम अपनी सच्ची मन की शान्ति और शक्ति को भूल गये हैं।

फिर जब हमारी जड़े कमजोर होने लगती हैं तो हम इधर-उधर के आकर्षणों में फँसने लग जाते हैं और यही से हम तनाव महसूस करने लग जाते हैं।

आहिस्ते-आहिस्ते ये तनाव हमारी मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य को असन्तुलित कर हमें बीमारियों में भी जकड़ सकता है।

राजयोग (Raja Yoga) एक ऐसा योग है जिसे हर कोई कर सकता हैं। ये एक ऐसा योग है जिसमें कोई धार्मिक प्रक्रिया या मंत्र आदि नहीं है । इसे कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है।

राज योग को आँखे खोलकर किया जाता है इसलिए ये अभ्यास सरल और आसान है। योग एक ऐसी स्तिति है जिसमे हम अपनी रोजमर्रा की चिन्ताओ से परे जाते है ओर हम अपने आध्यात्मिक सशक्तिकरण का आरंभ करते है।

आध्यात्मिक जागृति हमें व्यर्थ और नकारात्मक भावों से दूर कर अच्छे और सकारात्मक विचार चुनने की शक्ति देता है। हम परिस्थितियों का जवाब जल्दबाज़ी मे देने के बजाए , सोंच समज के करेगे । हम समरसता में जीने लगते हैं ।

बेहतर, खुशनुम: और मज़बूत रिश्ते बना अपने जीवन मे सकारात्मक परिवर्तन कर पाते हैं।

योगसूत्र में महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांगयोग का वर्णन आता है। 

 यमनियमासनप्राणायामप्रतयाहारधारणाध्यान-समाधयोऽष्टावड्गानि।।२९।।

अष्टांग, अर्थातू आठ अंगों को यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि के नाम से जाना जाता है। आइए इन सभी अंगों के संबंध में संक्षेप में जानते हैं।

योगाड्गनुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानवीप्तिराविवेकख्याति।।२८।।

अर्थात योग के सभी अंगों का अनुष्ठान करते करते जब अंधविश्वास का शमन हो जाता है, तब ज्ञान प्रज्वलित हो उठता है, उसकी अंतिम सीमा विवेकख्याति है।

अष्टांग योग साधन

दूसरे ही सूत्र में योग की परिभाषा देते हुए पतंजलि कहते हैं- “योगाश्चित्त वृत्तिनिरोधः।” अर्थात “योग चित्त की वृत्तियों का संयमन है।” चित्त वृत्तियों के निरोध के लिए पतंजलि ने द्वितीय और तृतीय पाद में जिस अष्टांग योग साधन का उपदेश दिया है, उसका संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार है-

  • यम – कायिक, वाचिक तथा मानसिक इस संयम के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय चोरी न करना, ब्रह्मचर्य जैसे अपरिग्रह आदि पाँच आचार विहित हैं। इनका पालन न करने से व्यक्ति का जीवन और समाज दोनों ही दुष्प्रभावित होते हैं।
  • नियम – मनुष्य को कर्तव्य परायण बनाने तथा जीवन को सुव्यवस्थित करते हेतु नियमों का विधान किया गया है। इनके अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान का समावेश है। शौच में बाह्य तथा आन्तर दोनों ही प्रकार की शुद्धि समाविष्ट है।
  • आसन – पतंजलि ने स्थिर तथा सुखपूर्वक बैठने की क्रिया को आसन कहा है। परवर्ती विचारकों ने अनेक आसनों की कल्पना की है। वास्तव में आसन हठयोग का एक मुख्य विषय ही है। इनसे संबंधित ‘हठयोग प्रदीपिका’ ‘घरेण्ड संहिता’ तथा ‘योगाशिखोपनिषद्’ में विस्तार से वर्णन मिलता है।
  • प्राणायाम – योग की यथेष्ट भूमिका के लिए नाड़ी साधन और उनके जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायाम मन की चंचलता और विक्षुब्धता पर विजय प्राप्त करने के लिए बहुत सहायक है।
  • प्रत्याहार – इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। इंद्रियाँ मनुष्य को बाह्यभिमुख किया करती हैं। प्रत्याहार के इस अभ्यास से साधक योग के लिए परम आवश्यक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त करता है।
  • धारणा – चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।
  • ध्यान – जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।
  • समाधि – यह चित्त की अवस्था है, जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।[1]
  • समाधि की भी दो श्रेणियाँ हैं- ‘सम्प्रज्ञात’ और ‘असम्प्रज्ञात’। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।

अष्टांग योग (Ashtanga Yoga) इस अष्टांग योग साधना का विस्तुत वर्णन दिया गया है। इस जरुर पठे ।अष्टांग योग साधना

Ashtanga Yoga
Ashtanga Yoga

योगों का राजा राजयोग

सभी योगों का राजा ‘राज योग’ को कहा जाता है, क्योंकि इसमें प्रत्येक प्रकार के योग की कुछ न कुछ समाग्री अवश्य मिल जाती है। राज योग में पतंजलि द्वारा रचित ‘अष्टांग योग’ का वर्णन आता है।

राज योग का विषय चित्तवृत्तियों का निरोध करना है। महर्षि पतंजलि ने समाहित चित्त वालों के लिए अभ्यास और वैराग्य तथा विक्षिप्त चित्त वालों के लिए क्रियायोग का सहारा लेकर आगे बढ़ने का मार्ग सुझाया है।

इन साधनों का उपयोग करके साधक के क्लेशों का नाश होता है, चित्त प्रसन्न होकर ज्ञान का प्रकाश फैलता है और विवेकख्याति प्राप्त होती है।

राजयोग (Raja Yoga) के लिए समय बनाना

बहुत से लोग कहते हैं कि वे योग करना चाहते हैं। बहुत से लोग ये भी कहते हैं कि वे योग नहीं करते, और क्यों?

क्योंकि वे कहते हैं उन्हें फुर्सत नहीं। तो कैसे और कहाँ वे व्यस्त लोग योग करने के लिए समय निकालते हैं?

पहले पहल सुबह – जिस पल आप अपनी आँख खोलते हैं – जागृत हो जाते हैं ,वहि योग के लिए सबसे सुन्दर समय है। खुद का अभिवादन करें, कितनी शक्तिशाली सकारात्मक आत्मा हैं आप। फिर उसका अभिवादन करें जो (भगवान) कभी सोता नहीं।

भोजन के समय – भोजन करने से पहले, कुछ पल के लिए यह विचार करें कि भोजन मिलना भी सौभाग्य है और इस समझ से विचार करें कि किस तरह हमारे विचार भोजन को प्रभावित करते हैं। हम जो सोचते हैं, कर्म करते हैं और वही बनते हैं। इस तरह अपने भोजन को सकारात्मक विचारों से भरना, कृतज्ञता और करुणा से भरा अर्थात्‍ हम खुद भी इन अच्छी बातों को ग्रहण करते हैं।

सारे दिन में – ट्रैफिक कन्ट्रोल – हम सभी अपनी जिन्दगी के हाइवे में ड्राइवर हैं। हम किधर जा रहे हैं इसकी गहराई से बीच -बीच में जांच करना अच्छी बात होगी।जब हम सड़क पर गाड़ी चला रहे होते हैं तो हमें हर ट्रैफिक लाइट पर रुकना पड़ता है, तो संभवत: हम इन क्षणों का योगदान में उपयोग कर सकते हैं। और इसी तरह, बीच-बीच में अपने विचारों को रोक कर उसकी जांच कर सकते हैं और एक सकारात्मक परिवर्तन की विधि को अपनाते हुए अपने मन को तटस्थ कर सकते हैं।

इस तरह के छोटे-छोटे अन्तरालमें शान्ति का अभ्यास करते रहने से हम अपनी विचारधारा पर पुन: ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं। यह हमारे मन को सकारात्मक दिशा में जाने में मदद करता है। यह अभ्यास करने से हम पायेंगे कि हमारा दिन शान्ति से चल रहा है क्योंकि ट्राफिक कन्ट्रोल का समय हमें सन्तुलित विचार रखने में मदद करता है।

रात्रि में – रात्रि का समय सोने से पूर्व अन्तिम योगाभ्यास के लिये बहुत अच्छा समय है। सोने के समय अपने लिए कूच वक्त निश्चित करें, शान्त होकर खुद के साथ बैठें, सारे दिन का पुनरावलोकन करें कि आज क्या अच्छा किया और कल के दिन में क्या सुधार ला सकते हैं। सारे दिन की बातें बन्द करते हुए उसे मन से बाहर निकाल दें। इस तरह अपने दिन का समापन करते हुए, आप बिना परेशानी के, शान्ति पूर्वक सो सकें।

कभी भी – जब कभी भी आप अपने को चिन्तित अवस्था में पाये वा निर्णय न ले पाने की स्थिति में पायें, उसी समय आप अपने अन्दर जायें और प्रति उत्तर का इन्तजार करें। जब आप अपने को कृतज्ञता और खुशी में पाते हैं तो प्रभु को जरूर बतायें। चाहे हम निराशा, अकेले थके हुए या फिर आशावादी और ऊपर उठे हुए हों – इन सभी स्तिथियों में योग किया जा सकता है – नकारात्मक बातों को हम अपनी शक्ति से ठीक करसकते है ओर जो सकारात्मकता अणुभूतियां है उनका आनन्द ले सकते हैं। इसलिए जो वक्त निकले उसे योगाभ्यास में सफल करें।

राजयोग (Raja Yoga) का उपयोग कौन कर सकता है?

कोई भी या यूँ कहें हर कोई राजयोग (Raja Yoga) का उपयोग कर सकता है। कुछ ब्रह्माकुमारीज़ सेन्टर से साल में एक बार लाभ लेते हैं, इससे जुड़े रहने के लिए और कुछ रोजमर्रा की जिंदगी में इस योग को शामिल कर लेते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो अपने मौजूदा आध्यात्मिक मार्ग में इस योग को शामिल कर लेते हैं। ये हर तरह से उपयोगी है और जो भी इसे अपनाते हैं उनका जीवन श्रेष्ठ बन जाता है। राजयोग (Raja Yoga) का उपयोग वे लोग करते हैं जिन्होंने :

  • आध्यात्मिक समाधान की काफी समय से खोज की है लेकिन राज योग से कूच ऐसा पाया जो उन्हें आज तक कहीं और ना मिला हो।
  • जिंदगी में बहुत कुछ प्राप्त किया हो और पाया हो और उन्हें ख्याल हुआ “क्या सिर्फ यही है ( जीवन में )”।
  • जिनके जीवन में कठिनाई और चुनौती का अनुभव किया है और उन्हें मदद करने के लिए अतिरिक्त शक्ति की तलाश है।
  • बहुत गहरी चाहना हो अपनी समझ की गहराई में उतरने की और परमात्मा से जुड़ने की।
  • जिन्हें चाहना है कि वे अपनी शक्ति और शुभ भावना से विश्व में शान्ति फैला सकें और जो स्वस्थ और संतोष उन्हें स्वयं उपलभ्द हुआ है वे अन्य आत्माओं के साथ बांट सकें।

राजयोग (Raja Yoga) की अनुभूति करें

अनुभव करें कि आप सक्षम, सशक्त, सफल और खुश हैं।

संकलप करें कि आप अपने हर विचार एवं प्रतिक्रिया के प्रति जागरूक हैं और उस पर आप का पूर्ण अधिकार है | एक ही क्षण में आप या तो उस संकल्प पर अमल करने का विचार करेंगे या उस को त्याग देंगे |

अपनी उन कमज़ोरिओं को मन में लायें जिन्हें आप छोड़ना चाहते हैं, जैसे, आत्म संदेह, स्वयं को क्षति पहुंचाना, आत्मसम्मान की कमी, अपराध बोध, चिन्ता आदि। आपकी इच्छा शक्ति के प्रभाव से न ही आप उन बातों को कभी स्वयं व्यक्त करेंगे और न ही आपके गृहस्त जीवन या कार्यस्थल पर उनका दुष्प्रभाव पड़ेगा ।

सम्भवतः, कुछ लोगों को इतना ‘स्व-नियंत्रित’ रहना अच्छा न भी लगे लेकिन आत्मा का ज्ञान पा लेने से आप स्वयं को स्वत्तः संयमित कर सकेंगे | लेकिन केवल स्वयं को | दूसरों का अपना जीवन है |

आप केवल स्वयं के ज़िम्मेवार हैं। हमारे मात-पिता ने जो किया सो किया, कभी अच्छा तो कभी बुरा परन्तु वह समय अब बीत गया है और अब आप एक स्वतंत्र आत्मा हैं जो अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जीने का चयन कर सकते हैं ।

राजयोग (Raja Yoga) से आप पुरानी बातों के प्रभाव से स्वयं को मुक्त कर जो बनना चाहें, बन सकते हैं। यही राजयोग (Raja Yoga) की शक्ति है।

यह प्राचीन राजयोग (Raja Yoga) अभ्यास आपकी प्राकृतिक शक्तियों को सुसज्जित कर आपके मन को आपका दोस्त बना देता है । आप मन नहीं है, आप शरीर नहीं है। बल्कि आपका एक मन है और आपका एक शरीर है।

यही आपके मन और शरीर कभी तो अच्छी तरह काम करते हैं लकिन कभी इन्हें स्वस्थ रखने के लिए शान्ति और व्यायाम की ज़रूरत पड़ती है ।

सब गलतियाँ करते हैं। संसाधनों को भी व्यर्थ गंवाते हैं। तब तक अपने बोल,शक्ति और समय व्यर्थ गवाँते हैं जब तक थोड़ा रूक कर यह गहन चिंतन नहीं करते कि जीवन में क्या महत्वपूर्ण है |

जब कोई अपने संकीर्ण विचारों को बदलने को तैयार नहीं होता, तब तब तक उसकी सोच सीमित रह जाती है – प्रेम की शक्ति का दमन हो जाता है। इस स्थिति में, आत्मा में शक्ति नहीं रह पाती कि वह परिस्थितियों का सामना कर पाये और इस से सब को नुकसान पहुँचता है |

जब आप एकांत में बैठ, अपने सभी तरह के नज़रिये को निष्प्रभाव कर, आत्मा की गहन शांति का अनुभव करते हैं, तब आपके जीवन में कई चमत्कारी परिवर्तन आ सकते हैं | लोग आपको बेहतर समझने लगेंगे, कई नये अवसर मिलेंगे, दोस्तों का प्यार बढ़ जाएगा और आपका तनाव कम हो जाएगा।

राजयोग (Raja Yoga) हमें सिखाता है कि कुछ क्षणों के लिए अपने आप को स्थिर कर, अपने जीवन की गतिविधियों का निरीक्षण करें| शांत रह, ठंडे दिमाग से, दूसरो के प्रभाव में आए बिना, सस्वैच्छा अनुसार कदम बढ़ायें |

राजयोग (Raja Yoga) आपको स्वतंत्र बनाता है। राजयोग (Raja Yoga) द्वारा प्रेम से बर्ताव करने की शक्ति बढ़ती है |

स्वामी विवेकानंद के अनुसार राजयोग | Swami Vivekananda Raja Yoga

स्वामी विवेकानंद कृत पुस्तक राजयोग में योग विद्या को लेकर उनके मत की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। उनकी यह किताब योग-शास्त्र के आधुनिक ग्रंथों में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वे महर्षि पतंजलि के योग-सूत्र नामक ग्रंथ को इस विद्या का आधारभूत ग्रंथ मानते थे। राजयोग की भूमिका में वे लिखते हैं, “पातंजल-सूत्र राजयोग का शास्त्र है और उस पर सर्वोच्च प्रामाणिक ग्रन्थ है।

अन्यान्य दार्शनिकों का किसी-किसी दार्शनिक विषय में पतञ्जलि से मतभेद होने पर भी, वे सभी, निश्चित रूप से, उनकी साधना-प्रणाली का अनुमोदन करते हैं।”

स्वामी जी का मानना है कि अष्टांग योग एक प्रणाली है, जिसके अभ्यास से निश्चित फल अपने आप प्राप्त होता है। इसके लिए किसी तरह के बाह्यविश्वास की आवश्यकता नहीं है।

इस विषय में वे कहते हैं, “अब तक हमने देखा, इस राजयोग की साधना में किसी प्रकार के विश्वास की आवश्यकता नहीं।

जब तक कोई बात स्वयं प्रत्यक्ष न कर सको, तब तक उस पर विश्वास न करो–राजयोग यही शिक्षा देता है। सत्य को प्रतिष्ठित करने के लिए अन्य किसी सहायता की आवश्यकता नहीं।” स्वामी विवेकानंद का मत है कि योग का अनुशीलन भी ज्ञान की भाँति व्यवस्थित तरीक़े से होना चाहिए और इसमें तर्कशीलता का अवलम्बन करना चाहिए।

इस विषय पर वे एक व्याख्यान में प्रकाश डालते हुए कहते हैं, “रहस्य-स्पृहा मानव-मस्तिष्क को दुर्बल कर देती है। इसके कारण ही आज योगशास्त्र नष्ट-सा हो गया है। किन्तु वास्तव में यह एक महाज्ञान है। चार हजार वर्ष से भी पहले यह आविष्कृत हुआ था। तब से भारतवर्ष में यह प्रणालीबद्ध होकर वर्णित और प्रचारित होता रहा है।”

विवेकानंद के मतानुसार समाधि ही अष्टांग योग का फल है, जो मानव-जीवन का लक्ष्य है। वे कहते हैं, “इस समाधि में प्रत्येक मनुष्य का, यही नहीं, प्रत्येक प्राणी का अधिकार है।

इसे निम्नतर प्राणी से लेकर अत्यंत उन्नत देवता तक सभी, कभी-न-कभी, इस अवस्था को अवश्य प्राप्त करेंगे, और जब किसी को यह अवस्था प्राप्त हो जायगी, तभी हम कहेंगे कि उसने यथार्थ धर्म की प्राप्ति की है। (raja yoga in hindi)

टिप्पणी (Note)

इस पोस्टमे हमने विज्ञान भैरव तंत्र (Vigyan Bhairav Tantra), पतंजलि योग सूत्र, रामायण (Ramcharitmanas),  श्रीमद्‍भगवद्‍गीता (Shrimad Bhagvat Geeta)महाभारत (Mahabhart)वेद (Vedas)  आदी परसे बनाइ है ।

आपसे निवेदन है की आप योग करनेसे पहेले उनके बारेमे जाण लेना बहुत आवशक है । आप भीरभी कोय गुरु या शास्त्रो को साथमे रखके योग करे हम नही चाहते आपका कुच बुरा हो । योगमे सावधानी नही बरतने पर आपको भारी नुकशान हो चकता है ।

इस पोस्ट केवल जानकरी के लिये है । योगके दरम्यान कोयभी नुकशान होगा तो हम जवबदार नही है । हमने तो मात्र आपको सही ज्ञान मिले ओर आप योग के बारेमे जान चके इस उदेशसे हम आपको जानकारी दे रहे है ।

इसेभी देखे – ॥ भारतीय सेना (Indian Force) ॥ पुरस्कार (Awards) ॥ इतिहास (History) ॥ युद्ध (War) ॥ भारत के स्वतंत्रता सेनानी (FREEDOM FIGHTERS OF INDIA) ॥ नाद योग (Nada Yoga)ज्ञानयोग (Gyan Yoga)महाशिवरात्रि (Mahashivratri)कर्म योग (Karma Yoga in Hindi)भक्ति योग (Bhakti Yoga in Hindi)॥ ॥ क्रिया योग (Kriya Yoga in Hindi)हठयोग (Hatha Yoga in Hindi)कुण्डलिनी योग (Kundalini Yoga in Hindi)अष्टांग योग (Ashtanga Yoga in Hindi)योग (Yoga in Hindi)

राजयोग क्या है ? – What Is Raja Yoga?

Raja Yoga

राजयोग (Raja Yoga) अन्तर जगत की ओर एक यात्रा है। यह स्वयं को जानने या यूँ कहें कि पुन: पहचानने की यात्रा है। राजयोग (Raja Yoga) अर्थात् अपनी भागदौड़ भरी जिन्दगी से थोड़ा समय निकालकर शान्ति से बैठकर आत्म निरीक्षण करना।
इस तरह के समय निकालने से हम अपने चेतना के मर्म की ओर लौट आते हैं। इस आधुनिक दुनिया में, हम अपनी जिन्दगी से इतने दूर निकल आये हैं कि हम अपनी सच्ची मन की शान्ति और शक्ति को भूल गये हैं।

योगों का राजा राजयोग

सभी योगों का राजा ‘राज योग’ को कहा जाता है, क्योंकि इसमें प्रत्येक प्रकार के योग की कुछ न कुछ समाग्री अवश्य मिल जाती है। राज योग में पतंजलि द्वारा रचित ‘अष्टांग योग’ का वर्णन आता है।
राज योग का विषय चित्तवृत्तियों का निरोध करना है। महर्षि पतंजलि ने समाहित चित्त वालों के लिए अभ्यास और वैराग्य तथा विक्षिप्त चित्त वालों के लिए क्रियायोग का सहारा लेकर आगे बढ़ने का मार्ग सुझाया है।

राजयोग (Raja Yoga) के लिए समय बनाना

बहुत से लोग कहते हैं कि वे योग करना चाहते हैं। बहुत से लोग ये भी कहते हैं कि वे योग नहीं करते, और क्यों?
क्योंकि वे कहते हैं उन्हें फुर्सत नहीं। तो कैसे और कहाँ वे व्यस्त लोग योग करने के लिए समय निकालते हैं?

राजयोग (Raja Yoga) का उपयोग कौन कर सकता है?

कोई भी या यूँ कहें हर कोई राजयोग (Raja Yoga) का उपयोग कर सकता है। कुछ ब्रह्माकुमारीज़ सेन्टर से साल में एक बार लाभ लेते हैं, इससे जुड़े रहने के लिए और कुछ रोजमर्रा की जिंदगी में इस योग को शामिल कर लेते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो अपने मौजूदा आध्यात्मिक मार्ग में इस योग को शामिल कर लेते हैं। ये हर तरह से उपयोगी है और जो भी इसे अपनाते हैं उनका जीवन श्रेष्ठ बन जाता है।

राजयोग (Raja Yoga) की अनुभूति करें

अनुभव करें कि आप सक्षम, सशक्त, सफल और खुश हैं।
संकलप करें कि आप अपने हर विचार एवं प्रतिक्रिया के प्रति जागरूक हैं और उस पर आप का पूर्ण अधिकार है | एक ही क्षण में आप या तो उस संकल्प पर अमल करने का विचार करेंगे या उस को त्याग देंगे |
अपनी उन कमज़ोरिओं को मन में लायें जिन्हें आप छोड़ना चाहते हैं, जैसे, आत्म संदेह, स्वयं को क्षति पहुंचाना, आत्मसम्मान की कमी, अपराध बोध, चिन्ता आदि। आपकी इच्छा शक्ति के प्रभाव से न ही आप उन बातों को कभी स्वयं व्यक्त करेंगे और न ही आपके गृहस्त जीवन या कार्यस्थल पर उनका दुष्प्रभाव पड़ेगा ।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार राजयोग

स्वामी विवेकानंद कृत पुस्तक राजयोग में योग विद्या को लेकर उनके मत की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। उनकी यह किताब योग-शास्त्र के आधुनिक ग्रंथों में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वे महर्षि पतंजलि के योग-सूत्र नामक ग्रंथ को इस विद्या का आधारभूत ग्रंथ मानते थे। राजयोग की भूमिका में वे लिखते हैं, “पातंजल-सूत्र राजयोग का शास्त्र है और उस पर सर्वोच्च प्रामाणिक ग्रन्थ है।
अन्यान्य दार्शनिकों का किसी-किसी दार्शनिक विषय में पतञ्जलि से मतभेद होने पर भी, वे सभी, निश्चित रूप से, उनकी साधना-प्रणाली का अनुमोदन करते हैं।”
स्वामी जी का मानना है कि अष्टांग योग एक प्रणाली है, जिसके अभ्यास से निश्चित फल अपने आप प्राप्त होता है। इसके लिए किसी तरह के बाह्यविश्वास की आवश्यकता नहीं है।

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