ब्रह्म पुराण (Brahma Purana)

Brahma Purana
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‘ब्रह्म पुराण (Brahma Purana)’ गणना की दृष्टि से सर्वप्रथम गिना जाता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि यह प्राचीनतम है। काल की दृष्टि से इसकी रचना बहुत बाद में हुई है। इस पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है। इसमें ‘ब्रह्म’ को सर्वोपरि माना गया है। इसीलिए इस पुराण को प्रथम स्थान दिया गया है। कर्मकाण्ड के बढ़ जाने से जो विकृतियां तत्कालीन समाज में फैल गई थीं, उनका विस्तृत वर्णन भी इस पुराण में मिलता है। यह समस्त विश्व ब्रह्म की इच्छा का ही परिणाम है। इसीलिए उसकी पूजा सर्वप्रथम की जाती है।

पुराणों में प्रथम

वेदवेत्ता महात्मा व्यासजी ने सम्पूर्ण लोकों के हित के लिये पहले ब्रह्म पुराण (Brahma Purana) का संकलन किया। वह सब पुराणों में प्रथम और धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष देनेवाला है। उसमें नाना प्रकार के आख्यान और इतिहास हैं। उसकी श्लोक-संख्या दस हज़ार बतायी जाती है। मुनीश्वर! उसमें देवताओं, असुरों और दक्ष आदि प्रजापतियों की उत्पत्ति कही गयी है। तदनन्तर उसमें लोकेश्वर भगवान सूर्य के पुण्यमय वंश का वर्णन किया गया है, जो महापातकों का नाश करने वाला है। उसी वंश में परमानन्दस्वरूप तथा चतुर्व्यूहावतारी भगवान श्रीरामचन्द्र जी के अवतार की कथा कही गयी है। (Brahma Purana)

तदनन्तर उस पुराण में चन्द्रवंश का वर्णन आया है और जगदीश्वर श्रीकृष्ण के पापनाशक चरित्र का भी वर्णन किया गया है। सम्पूर्ण द्वीपों, समस्त वर्षों तथा पाताल और स्वर्गलोक का वर्णन भी उस पुराण में देखा जाता है। नरकों का वर्णन, सूर्यदेव की स्तुति और कथा एवं पार्वतीजी के जन्म तथा विवाह का प्रतिपादन किया गया है। तदनन्तर दक्ष प्रजापति की कथा और एकाम्नकक्षेत्र का वर्णन है।

नारद! इस प्रकार इस ब्रह्म पुराण (Brahma Purana) के पूर्व भाग का निरूपण किया गया है। इसके उत्तर भाग में तीर्थयात्रा-विधिपूर्वक पुरुषोत्तम क्षेत्र का विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। इसी में श्रीकृष्णचरित्र का विस्तारपूर्वक उल्लेख हुआ है। यमलोक का वर्णन तथा पितरों के श्राद्ध की विधि है। इस उत्तर भाग में ही वर्णों और आश्रमों के धर्मों का विस्तारपूर्वक निरूपण किया गया है।

वैष्णव-धर्म का प्रतिपादन, युगों का निरूपण तथा प्रलय का भी वर्णन आया है। योगों का निरूपण, सांख्यसिद्धान्तों का प्रतिपादन, ब्रह्मवाद का दिग्दर्शन तथा पुराण की प्रशंसा आदि विषय आये हैं। इस प्रकार दो भागों से युक्त ब्रह्म पुराण (Brahma Purana) का वर्णन किया गया है, जो सब पापों का नाशक और सब प्रकार के सुख देने वाला है। इसमें सूत और शौनक का संवाद है। यह पुराण भोग और मोक्ष देने वाला है।

जो इस पुराण को लिखकर वैशाख की पूर्णिमा को अन्न, वस्त्र और आभूषणों द्वारा पौराणिक ब्राह्मण की पूजा करके उसे सुवर्ण और जलधेनुसहित इस लिखे हुए पुराण का भक्तिपूर्वक दान करता है, वह चन्द्रमा, सूर्य और तारों की स्थितिकाल तक ब्रह्मलोक में वास करता है। ब्रह्मन! जो ब्रह्म पुराण (Brahma Purana) की इस अनुक्रमणिका (विषय-सूची) का पाठ अथवा श्रवण करता है, वह भी समस्त पुराण के पाठ और श्रवण का फल पा लेता है। जो अपनी इन्द्रियों को वश में करके हविष्यान्न भोजन करते हुए नियमपूर्वक समूचे ब्रह्म पुराण का श्रवण करता है, वह ब्रह्मपद को प्राप्त होता है। वत्स! इस विषय में अधिक कहने से क्या लाभ? इस पुराण के कीर्तन से मनुष्य जो-जो चाहता है, वह सब पा लेता है। (Brahma Purana)

सूर्य

इस जगत् का प्रत्यक्ष जीवनदाता और कर्त्ता-धर्त्ता ‘सूर्य’ को माना गया है। इसलिए सर्वप्रथम सूर्य नारायण की उपासना इस पुराण में की गई है। सूर्य वंश का वर्णन भी इस पुराण में विस्तार से है। सूर्य भगवान की उपसना-महिमा इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है।

चौदह हज़ार श्लोक

सम्पूर्ण ‘ब्रह्म पुराण (Brahma Purana)’ में दो सौ छियालीस अध्याय हैं। इसकी श्लोक संख्या लगभग चौदह हज़ार है। इस पुराण की कथा लोमहर्षण सूत जी एवं शौनक ऋषियों के संवाद के माध्यम से वर्णित है। ‘सूर्य वंश’ के वर्णन के उपरान्त ‘चन्द्र वंश’ का विस्तार से वर्णन है। इसमें श्रीकृष्ण के अलौकिक चरित्र का विशेष महत्त्व दर्शाया गया है। यहीं पर जम्बू द्वीप तथा अन्य द्वीपों के वर्णन के साथ-साथ भारतवर्ष की महिमा का विवरण भी प्राप्त होता है। भारतवर्ष के वर्णन में भारत के महत्त्वपूर्ण तीर्थों का उल्लेख भी इस पुराण में किया गया है। इसमें ‘शिव-पार्वती’ आख्यान और ‘श्री कृष्ण चरित्र’ का वर्णन भी विस्तारपूर्वक है। ‘वराह अवतार ‘,’नृसिंह अवतार’ एवं ‘वामन अवतार’ आदि अवतारों का वर्णन स्थान-स्थान पर किया गया है। (Brahma Purana)

कोणार्क

सूर्यदेव का प्रमुख मन्दिर उड़ीसा के कोणार्क स्थान पर है। उसका परिचय भी इस पुराण में दिया गया है। उस मन्दिर के बारे में पुराणकार लिखता है-“भारतवर्ष में दक्षिण सागर के निकट ‘औड्र देश’ (उड़ीसा) है, जो स्वर्ग और मोक्ष- दोनों को प्रदान करने वाला है। वह समस्त गुणों से युक्त पवित्र देश है। उस देश में उत्पन्न होने वाले ब्राह्मण सदैव वन्दनीय हैं। उसी प्रदेश में ‘कोणादित्य’ नामक भगवान सूर्य का एक भव्य मन्दिर स्थित है।

इसमें सूर्य भगवान के दर्शन करके मनुष्य सभी पापों से छुटकारा पा जाता है। यह भोग और मोक्ष- दोनों को देने वाला है। माघ शुक्ल सप्तमी के दिन सूर्य भगवान की उपासना का विशेष पर्व यहाँ होता है। रात्रि बीत जाने पर प्रात:काल सागर में स्नान करके देव, ऋषि तथा मनुष्यों को भली-भांति तर्पण करना चाहिए। नवीन शुद्ध वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके, ताम्रपात्र अथवा अर्क पत्रों से बने दोने में तिल, अक्षत, जलीय रक्त चन्दन, लाल पुष्प और दर्पण रखकर सूर्य भगवान की पूजा करें।”

सूर्य पूजा प्रकरण में पुराणकार कहता है-

प्रणिधाय शिरो भूम्यां नमस्कारं करोति: य:।

तत्क्षणात् सर्वपापेभ्यो मुच्यते नात्र संशय: ॥(ब्रह्म पुराण 21/19)

अर्थात् जो प्राणी अपने मस्तक को भूमि पर टेककर सूर्यदेव को नमस्कार करता है, वह उसी क्षण समस्त पापों से छुटकारा पा जाता है। इसमें नाममात्र को भी संशय नहीं है।

सूर्य की उपासना सागर तट पर ॐ नमो नारायण मन्त्र के जप द्वारा करनी चाहिए। यह मन्त्र समस्त मनोरथों की सिद्धि देने वाला है। सागर तीर्थराज कहलाता है। जब तक उसके महत्त्व का वर्णन नहीं किया जाता, तब तक अन्य तीर्थ अपने महत्त्व को लेकर गर्जना करते रहते हैं।

तावद् गर्जन्ति तीर्थानि माहात्म्यै: स्वै: पृथक् पृथक्।

यावन्न तीर्थराजस्य महात्म्यं वर्ण्यते द्विजै ॥ (ब्रह्म पुराण 29/16-17)

भारतवर्ष

पुराणों की परम्परा के अनुसार ‘ब्रह्म पुराण (Brahma Purana)’ में सृष्टि के समस्त लोकों और भारतवर्ष का भी वर्णन किया गया है। कलियुग का वर्णन भी इस पुराण में विस्तार से उपलब्ध है। ‘ब्रह्म पुराण (Brahma Purana)’ में जो कथाएं दी गई हैं, वे अन्य पुराणों की कथाओं से भिन्न हैं। जैसे ‘शिव-पार्वती’ विवाह की वर्णन अन्य पुराणों से भिन्न है। इस कथा में दिखाया गया है कि शिव स्वयं विकृत रूप में पार्वती के पास जाकर विवाह का प्रस्ताव करते हैं। विवाह पक्का हो जाने पर जब शिव बारात लेकर जाते हैं तो पार्वती की गोद में पांच मुख वाला एक बालक खेलता दिखाया जाता है। (Brahma Purana)

इन्द्र क्रोधित होकर उसे मारने के लिए अपना वज्र उठाते हैं, परंतु उनका हाथ उठा का उठा रह जाता है। तब ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति करने पर इन्द्र का हाथ ठीक होता है। विवाह सम्पन्न होता है। लेकिन अन्य कथाओं में पार्वती स्वयं तपस्या करके शिव की स्वीकृति प्राप्त करती हैं। यहाँ पांच मुख वाले बालक से तात्पर्य पांच तत्त्वों से है। पार्वती स्वयं आद्या शक्ति की प्रतीक हैं। शिव भी स्वयं पंचमुखी हैं। उनका ही बाल रूप पार्वती की गोद में स्थित दिखाया गया है। (Brahma Purana)

इसी प्रकार गंगावतरण की कथा भी कुछ अलग है। इसमें गौतम ऋषि अपने आश्रम में मूर्च्छित गाय को चैतन्य करने के लिए शिव की स्तुति करके गंगा को शिव की जटाओं से मुक्त करके लाते हैं। तभी गंगा को ‘गौतमी’ भी कहा जाता है।

‘ब्रह्म पुराण (Brahma Purana)’ में परम्परागत तीर्थों के अतिरिक्त कुछ ऐसे तीर्थों का भी वर्णन है, जिनका स्थान खोज पाना अत्यन्त कठिन है। उदाहरणार्थ कपोत तीर्थ, पैशाच तीर्थ, क्षुधा तीर्थ, चक्र तीर्थ, गणिमा संगम तीर्थ, अहल्या संगमेन्द्र तीर्थ, श्वेत तीर्थ, वृद्धा संगम तीर्थ, ऋण प्रमोचन तीर्थ, सरस्वती संगम तीर्थ, रेवती संगम तीर्थ, राम तीर्थ, पुत्र तीर्थ, खड्ग तीर्थ, आनन्द तीर्थ, कपिला संगम तीर्थ आदि । ये सभी तीर्थ गौतम ऋषि से सम्बन्धित हैं।

विचित्र कथाऐं

इन तीर्थों से जुड़ी बहुत-सी विचित्र कथाओं से यह पुराण भरा पड़ा है। कुछ कथाएं उपदेश परक हैं और कुछ बेतुकी जान पड़ती हैं, जैसे-सरमा कुतिया की कथा और वृद्धा संगम तीर्थ की कथाएं। चक्षु तीर्थ की कथा में धर्म पक्ष का समर्थन करने वाला मणिकुण्डल नामक वैश्य, मित्र के द्वारा ठगे जाने पर भी अन्त में सभी कष्ट दूर कर पाने में सफल हो जाता है। इस पुराण में ‘योग’ के लिए चित्त की एकाग्रता पर बल दिया गया है।

केवल पद्मासन लगाकर बैठ जाने से योग नहीं होता। योगी का मन जब किसी कर्म में आसक्त नहीं होता, तभी उसे सच्चा आनन्द प्राप्त होता है। ‘आत्मज्ञान’ को महत्त्व देते हुए पुराणकार बताता है कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय और स्वप्न आदि दोषों को त्याग कर मनुष्य अपनी इन्द्रियों को वश में करके आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है। ‘ज्ञान योग’ कर्म योग और सांख्य योग-दोनों से बढ़कर है। (Brahma Purana)

जिस प्रकार जल में संचरण करने वाला पक्षी जल में लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार आत्मयोगी व्यक्ति संसार में समस्त कर्म करते हुए भी विदेहराज जनक की भांति कर्म में लिप्त नहीं होता। भगवान विष्णु के श्रीकृष्ण अवतार के साथ साथ इस पुराण में विष्णु के दत्तात्रेय, परशुराम और श्रीराम के अवतारों की कथा भी प्राप्त होती है। संभल में होने वाले कल्कि अवतार का भी उल्लेख इस पुराण में है।

इसके अतिरिक्त श्राद्ध, पितृकल्प, विद्या-अविद्या आदि का वर्णन भी इस पुराण में प्राप्त होता हैं इस पुराण में जितने विस्तार से गौतमी नदी की महिमा का वर्णन हुआ है, वैसा किसी अन्य पुराण में उपलब्ध नहीं होता। लगभग आधा पुराण गोमती नदी या गोदावरी नदी की पवित्रता, दिव्यता और महत्ता आदि से भरा पड़ा है। गंगा को ही उत्तर में ‘भागीरथी’ और दक्षिण में ‘गोदावरी’ अर्थात् ‘गौतमी गंगा’ के नाम से पुकारा जाता है।

गोदावरी के उद्गम से लेकर सागर में गिरने तक के मार्ग में तटवर्ती तीर्थों का बड़ा ही मनोहारी, चित्रमय और काव्यमय चित्रण इस पुराण में किया गया है। उन तीर्थों के साथ-साथ रोचक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं, जैसे- कपोत-व्याध आख्यान, अंजना-केसरी और हनुमान का आख्यान, दधीचि आख्यान,सरमा-पणि आख्यान, नागमाता कद्रू एवं गरुड़ माता विनता की कथा आदि। ‘ब्रह्म पुराण (Brahma Purana)’ के तीर्थों का मुख्य उद्देश्य गौतमी गंगा के महत्त्व का प्रतिपादन करना ही प्रतीत होता है। (Brahma Purana)

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