वायु मुद्रा (Vayu Mudra in Hindi)

Vayu Mudra
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वायु मुद्रा (Vayu Mudra in Hindi) मुद्रा क्या है :-

वायु मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में वायु का संतुलन बना रहता है। आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर के अंदर चौरासी तरह की वायु होती है और वायु चंचलता की निशानी है वायु की विकृति मन की चंचलता को बढ़ाती है इसलिए मन को एक ही जगह स्थिर रखने के लिए वायु-मुद्रा का अभ्यास किया जाता है माना जाता है की जब तक शुद्ध वायु शरीर को प्राप्त नहीं हो जाती तब तक हमारा शरीर रोगी रहता है।

शरीर को रोगों से बचाने के लिए वायु मुद्रा का अभ्यास किया जाता है। सामान्य तौर पर इस मुद्रा को कुछ देर तक बार-बार करने से वायु विकार संबंधी समस्या की गंभीरता 12 से 24 घंटे में दूर हो जाती है। चलिए जानते है इसे कैसे किया  किया जाता है और इससे होने वाले लाभों के बारें में। (Vayu Mudra in Hindi)

इस मुद्रा से बढ़ी हुई वायु पर नियंत्रण किया जाता है। तर्जनी वायु तत्व की प्रतीक है। उसको मोड़कर दबाने से वायु तत्व कम होना शुरु हो जाता है। वायु मूद्रा से हाथ के मंनिबंध के बीचों बीच स्थित वात नाड़ी में बन्ध लग जाता है। अत: इससे समस्त वात रोगों को ठीक किया जा सकता है। (Vayu Mudra in Hindi)

वायु मुद्रा को करने से विधि :-

1- सबसे पहले आप जमीन पर कोई चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ , ध्यान रहे की आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो।

2- अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख लें और हथेलियाँ आकाश की तरफ होनी चाहिये।

3- अब आप अपने अंगूठे के बगल वाली (तर्जनी) अंगुली को हथेली की तरफ मोडकर अंगूठे की जड़ में लगा दें और बाकी बची उँगलियों को सीधी रखें।

4- अपना ध्यान श्वास पर  लगाकर अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास के दौरान श्वास को सामान्य रखना है।

5- इस अवस्था में कम से कम 8-10 मिनट तक रहना चाहिये।

वायु मुद्रा करने का समय व अवधि :-

इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। वायु मुद्रा का अभ्यास प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल को 8-8-9-9  मिनट के लिए किया जा सकता है। (Vayu Mudra in Hindi)

वायु मुद्रा से होने वाले लाभ :-

1. सभी वात रोगों में बहुत ही लाभकारी। वायु के बढ़ जाने से शरीर में पीड़ा होने लगती है , जैसे कि कमर दर्द , सरवाईकल पीड़ा , गठिया , घुटनों का दर्द , जोड़ों का दर्द , एड़ी का दर्द इत्यादि। इन सभी पीड़ाओं में वायु मुद्रा लगाने से कुपित वायु शान्त होती है और फलस्वरूप दर्द में आराम मिलता है। इसका अभ्यास रोज 45 मिनट तक लगातार कई दिन करें।

2. अधिक वायु जोड़ों में द्रव्य को सुखा देती है। जब वायु घुटनों के जोड़ों में घुस जाती है तो दर्द होता है। इसके लिए वायु मुद्रा जोड़ों की पीड़ा में लाभदायक है।

3. दोनों हाथों की कलाई के मध्य में स्थित वात नाडी में इस मुद्रा में बन्ध लग जाता है। गर्दन के बाएं भाग में दर्द व जकदन होने से बायें हाथ की कलाई इसी मुद्रा में क्लाक वाईज व एंटी क्लाक वाईज घुमाने से शीघ्र ही चमत्कारी लाभ होता है। इसी प्रकार गर्दन के दाएं भाग की पीड़ा में दाएं हाथ की कलाई घुमाने से लाभ होता है। (Vayu Mudra in Hindi)

4. गैस के रोगों में भी यह मुद्रा लाभकारी है। पेट में जब गैस बढ़ जाती है , खाने के बाद बेचैनी होती है। उल्टी करने का मन होता है, अपच की समस्या , तो इस मुद्रा का प्रयोग करें। बस में यात्रा करते समय यह मुद्रा करें तो उल्टी की शिकायत नहीं रहती। (Vayu Mudra in Hindi)

5. इस मुद्रा में रक्त संचार ठीक होता है , रक्त संचार की गड़बड़ी से होने वाले सभी रोग दूर होते हैं। यहाँ पर आपको यह जानकारी देना आवश्यक है कि रक्त संचार के ठीक न होने से शरीर में पीड़ा होती है। शरीर के जिस अंग में रक्त की पूर्ति ठीक से नहीं होती , वहन पर पीड़ा होती है, जैसे की हाथों और पैरों का कंपन , अंगों का सुन्न होना , लकवा। ये सभी रोग वायु मुद्रा से बिना दवाई के ठीक हो सकते हैं।

6. ह्रदय की पीड़ा भी रक्त संचार का दोष है। अत: वायु मुद्रा से ह्रदय की पीड़ा भी शांत होती है , और ह्रदय रोग भी ठीक होता है।

7. वायु के किसी भी आकस्मिक रोग में 24 घंटे के भीतर ही इस मुद्रा के प्रयोग से लाभ मिलना आरम्भ हो जाता है।

8. आयुर्वेद के अनुसार 80 प्रकार के वायु रोग होते हैं , जो सभी वायु मुद्रा से ठीक होते हैं।

9. असाध्य और चिरकालिक वायु रोगों में वायु मुद्रा के साथ प्राण मुद्रा का भी प्रयोग करना चाहिए। प्राण मुद्रा से प्राणशक्ति बढती है – आत्मबल एवं आत्म विश्वास बढ़ता है।

10. वायु की अधिकता के कारण ह्रदय की रक्तवाहिनियाँ सिकुड़ जाती हैं। वायु मिदरा करने से यह रक्तवाहिनियाँ लचीली होती हैं , उनकी सिकुडन दूर होती है , जिससे रक्त संचार ठीक होकर ह्रदय रोग दूर होता है। (Vayu Mudra in Hindi)

11. पोलियो में भी इस मुद्रा के उपयोग में लाभ होता है।

12. आँखों के अकारण झपकने में भी यह मुद्रा लाभ करती है।

13. रुक रुक कर डकार आने पर भी यह मुद्रा लाभ करती है।

14. इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से सुषुम्ना नाड़ी में प्राण वायु का संचार होने लगता है जिससे चक्रों का जागरण होता है।

15. इसको करने से मन की चंचलता समाप्त होकर मन एकाग्रत होता है।

16. इसे रोज़ करने से हिचकी कम हो जाती है।

17. त्वचा में रुखापन और खुजली दूर हो जाती है।

18. वायु मुद्रा के साथ – साथ दिन में तीन लीटर पानी पीने से वात रोग , गठिया शीघ्र दूर होता है। पानी को उबालकर हल्का गर्म होने पर पीएं।

19. हाथों में सुन्नपन हो तो वायु मुद्रा के साथ ही हाथों के सूक्ष्म व्यायाम करने से चमत्कारी लाभ होगा।

20. वज्रासन में बैठकर वायु मुद्रा करने से जल्दी लाभ मिलता है।

21. शरीर में कहीं भी रोग होता है तो सबसे पहले पीड़ा अथवा सुन्नपन आता है – इन दोनों में वायु मुद्रा अत्यन्त लाभकारी है। अत: वायु मुद्रा से सभी रोगों को आरम्भ में ही समाप्त करने की शक्ति है।

वायु मुद्रा में सावधानियां :-

किसी भी प्रकार का शरीर में दर्द होने पर वायु मुद्रा करने से शरीर का दर्द तुरंत बंद हो जाता है लेकिन इसे आप अधिक लाभ की लालसा में अनावश्यक रूप से अधिक समय तक नही करें अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है। पीड़ा के शान्त होते ही इस मुद्रा को खोल दें।

वायु रोगों को दूर करने के लिए गैस व यूरिक एसिड उत्पन्न करने वाले भोज्य पदार्थों का प्रयोग कुछ दिनों के लिए छोड़ दें जैसे राजमा , दालें , मटर , गोभी , पनीर , सोया इत्यादि। दालों का उपयोग करना भी हो तो मूंग साबुत का उपयोग केवल दिन में ही करें।

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